पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२१२

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( १८५ ) का अपनी युद्ध-नीतियों में उसके विशाल नागरिक-समूहों द्वारा केवल पृट-पोषण होता है, वहां यह नहीं कहा जा सकता कि युद्ध जनता का हो गया है। सरकार के पीछे जनसमुदाय का संगठित होना एक वात है और जन समुदाय की हांक पर सरकार का उसके साथ हो लेना दूसरी वात । इस मत के अनुसार जव चर्चिल इंगलैंड का प्रधानमन्त्री हुआ तब से जर्मनी के विरुद्ध इगलैंड का युद्ध जनता का युद्ध हो गया मानना चाहिये । हम सब जानते हैं कि खूब सुसंगठित श्रमिक वर्ग की पार्टियों के लिए भी “साम्राज्यवादी युद्ध को घरेलू युद्ध में परिणित करदो" इस नारे के अनुसार अाचरण करना कितना कठिन है , पूँजीवादी देशों में उग्रराष्ट्र -भक्ति खूब है और श्रमिक वर्ग भी सङ्कट के अवसरों पर उसकी लहर में बह जाता है। पिछले युद्ध में और वर्तमान युद्ध में भी श्रमिकों ने साधारणतः अपनी सरकारों का साथ दिया है। अाज की सरकारों को विराट जनसमुदायों का सहारा मिल रहा है । यह समझना गलत होगा कि जर्मन जनता हिटलर का पक्ष नहीं ले रही है। जनता को उसके शासक उल्लू बना रहे हैं और वह सहज ही युद्धोन्माद का शिकार बन गई है । अतः केवल इस तथ्य से कि किसी देश-विदेश की जनता अपनी सरकार के युद्ध-प्रयत्नों में इस समय साथ दे रही है, युद्ध न बन जायगा, और न न्यायपूर्ण और प्रगतिशील । जापान पिछले अनेक वर्षों से चीन के साथ अनियमित युद्ध लड़ता रहा है, यद्यपि युद्ध घोषणा अभी हाल में ही हुई है । ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमरीका भी जापान के विरुद्ध शत्रुता की घोषणा न करके, कुछ समय पूर्व से बड़े २ ऋण और युद्ध सामग्री देकर चीन की जनताका