पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२१५

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( १८ ) समाप्ति पर शांति कांफस में रूस और चीन का निर्णयात्मक हाथ हांगा ! यह एक भ्रम है जिससे हमें व वना चाहिये । इस बार मित्र राष्ट्रों की जीत होने की दशा मे शांति-सन्धि में मुख्यतः अमरीका की बात चलेगी । यह कहना त्रुटिपूर्ण है कि इंगलैड और अमेरिका स्टालिन के हाथ की कठपुतली हैं और वह उनसे अपना काम करा रहा है। जिस प्रकार गत काल में इंगलैंड ने पूँजीवाद का सबसे अधिक शक्तिशाली प्रतिनिधि होने के नाते, पिछले युद्ध की शांति सन्धि पर अपना मन्तव्य लादा धा, उसी प्रकार वर्तमान समय में, अमरीका पूँजीवाद का सबसे शक्तिशाली प्रतिनिधि होने के कारण इस बार की शांति-सन्धि में मन चाही करेगा । सम्भावना यह है कि अमेरिका प्रशांत-क्षेत्र में अपना प्रभाव जमा लेगा कि और इंगलैंड अन्य क्षेत्रों में अपना 'वरदहस्त' रखने का दावा करेगा। हां, रूस का अपने खोये हुए भूमि भागों को पुनः अखण्डता प्रात हो जायगी । केवल ब्रिटेन और अमरीका के स्वार्थ वहां अवश्य बने रहेंगे। यह इसलिए होगा क्योंकि ये देश चीन के युद्ध-प्रयत्नों को मुख्यतः अपने हितों में आर्थिक सहायता देते रहे हैं । यदि जापानी सामाज्यवाद चला भी गया, तो ब्रिटिश और अमरीकी सामाज्यवाह वने रहेंगे । रूप और चीन अपने साथी राष्ट्रों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न कर पायेंगे। अागामी बर्षों में अमरीका के अपर उनकी आर्थिक निर्भरता उन्हें अधिक स्वतन्त्र दिशा न अपनाने देगी। परन्तु युद्ध क्रांतियों के भी जनक होते हैं । किन्तु यह भविष्य- वाणी करना कठिन है कि वे क्रांतियाँ युद्ध-काल में होगी अथवा उसके अन्त समय में । सम्भावना यह है कि युद्ध के अनन्तर एक शृखला में अनेक क्रांतियां होगी । युद्ध के निर्णय अन्तिम नहीं होंगे। जन क्रांतियों द्वारा उनमें संशोथन किये जायगे । ऐतिहासिक