पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२२१

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( १६४ ) हार से सामान्यवाद कमजोर न होकर अधिक शक्तिशाली बनेगा और इसलिए उन्हें सरकार के युद्ध-प्रयत्नों में, बिना कोई शर्ते लगाये सहयोग करना चाहिए । सी० सी० सी० ने ३० अक्टूवर सन् १६४५ के अपने एक पार्टी पत्र (जिल्द १, संख्या ५३) इस विचार- श्रृंखला की विस्तारपूर्वक समीक्षा करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला था कि जितने परिमाण में जनता सामाज्यवादियों और उनके शासन के विरुद्ध खड़े होने की शक्ति प्राप्त कर लेगी उतने ही परिमाण में वह अन्तर्राष्ट्रीय जनमोर्चे पर, फासिज्म के विरुद्ध सोवियत जनता और विश्व की जनता के लिए युद्ध जीतने में सहायक हो सकेगी। जो लोग कहते हैं कि साम्राज्यवादी अपने वैषम्य-विरोधों से बाध्य होकर रूस की पूरी सहायता कर रहे हैं, और भारतीय जनता को केवल उन्हें सहायता देनी है वे लोग न तो जनतावादी नीति का निरूपण करते हैं और न अन्तर्राष्ट्रवादी नीति का । वे केवल सामाज्यवादी असत्य को प्रतिध्वनित करते हैं। जनता पर, श्रमिकवर्ग पर भरोसा करना, सामाज्यवादियों पर न हो यह सच्चा अन्तराष्ट्रवादी नीति का मूलतत्व है । जो लोग कहते हैं कि हम ब्रिटिश सरकार के युद्ध-प्रयत्नों में सहायक होकर सोवियत राष्ट्र का साथ दे सकते अथवा जनता के लिए युद्ध जीत सकते हैं, वे झूठे अन्तर्राष्ट्रवादी और जनता को धोखा देने वालो हैं ।" भारतीय साम्यवादी जनतावादी मोर्चे के हथकंडों के वातावरण में नहीं पलो थे, अन्यथा अपने युद्ध-सम्बन्धी विचारों को बदल लेने में उन्हें अधिक देर नहीं लगती। फिर इङ्गलैंण्ड के साथ भारत के सम्बन्धों ने भी उन्हें अपने विरोधी रवैये को छोड़ने से रोका । परन्तु अाखिर बाहर से युद्ध में साथ देने का श्रादेश अाया, और उन्हें अपने निश्चय के विरुद्ध उस के सामने सिर झुकाना पड़ा अब उनके लिए अपने परिवर्तित रवैये की पुष्टि में नया राग