पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२३२

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( २०५ ) होता। हमारे जनसमुदाय ने पिछले तीन सालों में अभिनव रत्माह का परिचय दिया है और संसार को दिखा दिया है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए उनमे कितनी लगन और दृढ़ संकल्प है। मेरी निश्चित धारणा है कि इस अान्दोलन के फलस्वरूप देश को गष्ट्रीय शक्तियों को भारी बल मिला है। मैं उन लोगों में से नहीं हू जी दस महान् आन्दोलन के महत्व को कम करने के लिए कानूनी बारीकियों और तर्क जालों का सहारा लेते हैं। इसने निस्तदेह भारत के स्वाधीन होने के दृढ़ व्रत का पक्का परिचय दे दिया है । मैं लगे हाथ उस सूझ, त्याग और सगटन करने की क्षमता की सराहना करना अपना कर्तव्य समझता हूं, जिनका प्रदर्शन भारतीय विद्यार्थियों ने किया है। चूँ कि वह देश के भावी नेता बनने जा रहे हैं, अतः यह बड़ा ही शुभ लक्षण है और इससे मुझे आशा होती है कि भारत के सामने एक उज्ज्वल और शानदार भविष्य है। प्रश्नः--भारत की उम अार्थिक सयोजना के विषय में प्रापका क्या विचार है जिसकी आजकल इतनी चर्चा हो रही हैं ? उत्तर:-मैं भारत के औद्योगीकरण के पन मे हू; परन्तु नुख्य उद्योगों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए और अन्य उद्योग राज्य का देख भाल और नियंत्रण में चलाए जाने चाहिए । परन्तु इतना ही काफी नहीं है | सामन्तशाही अर्थ व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए, और भूमि-व्यवस्था में उग्र परिवर्तन किए जाने चाहिए । मेरा तात्पर्य यह है कि खेतिहर और राज्य के बीच में जिनने वींच के आदी हैं, उनका अस्तित्व समाप्त किया जाना चाहिए । भूमि की उत्पादन शक्ति बढ़ाई जानी चाहिए और कृपि-कर्म को सहकारी प्राधा संगठित किया जाना चाहिए । ऋणों को समान किया जाना चाहिए और राज्य को कृपकों के लिए सस्ते ऋण की सुविधा जुटानी पर