पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२३४

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आगे बढ़ना [३] भारत और युद्धोत्तर जगत्* युद्ध जीता जा चुका है | प्रश्न है कि क्या मित्रराष्ट्रीय सरकारें शान्ति लाने में समर्थ हो सकेंगी। जैसा चतुर पर्यवेक्षकों ने कहा है, यदि स्थायी शान्ति स्थापित करनी है, तो उसके अाधारभूत सिद्धान्त युद्ध काल में ही निश्चित होजाने चाहिए थे । यदि हमें दूसरा यद्ध नहीं छिड़ने देना है, तो हमें एक ऐसा प्रार्थिक ढाँचा बनाना चाहिये जो जनसमुदाय को अधिकाधिक समुन्नत कर सके। वर्तमान ढांचे की यही पर्याप्त निकृष्टता है कि केवल युद्ध-काल में ही सव लोगों को काम मिल सका है । इस ढॉचे में मूलभूत परिवर्तन किए बिना जनतन्त्र की अवस्था सब जगह संकटमय हो जायगी हम युद्ध-पूर्व की श्रार्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति का फिर से अवलम्बन नहीं कर सकते । समाज की संयोजना जनसाधारण की सुख-समृद्धि के लिए करनी पड़ेगी। हैरोल्ड लास्की के शब्दों में "नाजीवाद के ऊपर सामरिक विजय प्राप्त कर लेने

  • अमृत बाजार पत्रिका, वाषिक पूजा अंक, १६४५ ॥

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