पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२३६

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केवल उस प्रकार का ममझौता होने की दशा में ले सकती है, अन्यथा नहीं ! इसके अतिरिक राष्ट्र-सब के सदस्य राष्ट्रों द्वारा शासित पराधीन प्रदेशों की देख-रेख का कोई प्रबन्ध नहीं किया गया है और अधिकार-पत्र के अन्तर्गत जिन उद्देश्यों और लक्ष्यों को वे सदस्य-राट मानते हैं, उनकी पूर्ति के लिये उनके ऊपर कोई दवाव नहीं डाला जा सकता । फिर इंगलैंड, फांस और हालैंड श्रपने सामाज्यों को छोड़ने के लिये तैयार नहीं हैं । चचिल के ये शब्द कि "हमारा इरादा इटे रहने का है," अभी तक हमारे कानों में गुज रहे हैं। मजदूर सरकार ने हांगकांग चीन को वापिस नहीं किया है। श्री. वेयिन की वैदेशिक नीति चचिल की नीति का ही उत्तराद्ध है । ब्रिटिश लोग ,अपने वैभव और शक्ति के लिये अपने साम्राज्य को अावश्यक समझते हैं। पुरानी विश्व-व्यवस्था से चिपटे रहने की यह हठभरी इच्छा ससार में शांति और आर्थिक सुरक्षा स्थापित न होने देगी। यह भी स्पष्ट है कि कोई भी संस्था तब तक शांति रखने में समर्थ न हो सकेगी, जब तक कि उसके प्रमुख सदस्य वैपा न करना चाहे । अागामी जगत् का स्वरूप विश्व-अधिकार-पत्रों में लिखी हुई ऊँची बातों के द्वारा नहीं, बल्कि नेताओं और नीतियों के द्वारा निर्धारित होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि शांति खोई जा चुकी है और यइ रक्त-स्नान एक बार फिर व्यर्थ सिद्ध हुअा हैं । ऐसी अवस्था में स्वतन्त्रता और प्रजातन्त्र के प्रत्येक सच्चे प्रेमी का यह कर्तव्य है कि यह वर्तमान स्थिति से जनता को ठीक २ अवगत करे और प्रनि- क्रिया की शक्तियों से लोहा लेने के लिए उसे संगठित करे, जिससे खोई हुई शांति फिर से लाई जा सके । अागामी कुछ वर्ष निर्णयात्मक होंगे और मंमार की सभी प्रगतिशील शक्तियों का यह