पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १३ ) उनका दुर्बल स्वास्थ्य उनकी अपनी सबसे बड़ी परेशानी और देश का दुर्भाग्य रहा है | लम्बे समय तक वे एक दम अकर्मक हो जाते हैं । जिन्होंने उन्हें दमे के कठिन आघातों की असह्य पीड़ा सहते हुये देखा है, उन्होंने उनके धैर्य और प्रसन्नमुखता पर आश्चर्य प्रकट किया है । जून सन् १९४५ में अहमदनगर गढ़ की हिरासत से छूटने के पश्चात् से तो वे बिल्कुल असमर्थ से हो गये है । उनके क्षीण स्वास्थ्य को देख कर अधिक अचम्भा इसलिए होता है क्योंकि उनके माता पिता पूर्ण स्वस्थ्य थे । उनके पिता ने ७२ और उनकी माता ने ८७ वर्ष की दीर्घायु लाभ की थी। उनके मोहक व्यवहार, उनकी सौम्य और प्रगाढ़ विद्वता, और उनके प्राचार-विचार ने उन्हें कोटि २ जनता का प्रियभाजन बना दिया है। उनका जीवन एक ऐसे व्यक्ति का जीवन है जो एक आदर्श और एक विश्वास के लिए जीता है । वह आदर्श है एक वर्ग:विहीन समाज का जिसमें दारिद्य, अज्ञान और शोषण का नाम न हो, और वह विश्द्रास है उस नबीन संसार का निर्माण करने बाले साधारण मनुष्य और उसकी क्रांतिकारी क्षमता में । उनका जीवन उद्देश्यों की पवित्रता और आत्मा की विमल ज्योति से ऐसा परिपूर्ण है कि उनके संसर्ग में आने वाले व्यक्ति ही उससे उन्नत नहीं बनते, बल्कि सामाजिक जीवन भी उसके आलोक से उद्भासित रहता है।