पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२३

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कि वे किसी से "न" नहीं कह सकते, और लोग इसका खूब अनुचित लाभ उठाते हैं । उनका दूसरा दोष उनकी अतिशय विनय- शीलता है । यों तो सयुक्तप्रांत, परम्परा से, भद्रता और शिष्टता का घर रहा है, और वहाँ के किसी सज्जन को कोई अप्रिय बात कहने में उतने ही मिनट लगते है जितने किसी बम्बई निवासी को सेकिड । परन्तु वहाँ के लिए भी प्राचार्य जी की सरलता और सौजन्यता अत्यधिक नहीं तो अमाधारण अवश्य है। यद्यपि प्राचार्य जी सदैव अत्यधिक व्यस्त रहते हैं, परंतु फिर भी वे उन व्यक्तियों में से है जिनके पास आसानी से पहुँच हो सकती है । फैजावाद, बनारस अथवा लखनऊ में उनके घर पर, सब समय, श्रानुकों की भीड़ लगी रहती है। उनमें ऐसे भी अनेक व्यक्ति देखने को मिलते हैं जो विना किसी विशेष कारण के उनके पास घटों बैठे रहते हैं । प्राचार्य जी उनसे क्षमा नहीं माँग सकते चाहे कितना ही आवश्यक काम क्यों न पड़ा हो । परिणाम यह होता है कि चलते पुरजे अड़ियल अादमी अपना काम करा ले जाते हैं और बहुधा महत्वपूर्ण कार्य अधूरा पड़ा रह जाता है । फिर उस अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए वे रात में देर तक परिश्रम करते हैं और इससे उनके स्वास्थ्य को भारी हानि पहुँचती है। यह होता है मित्रों और प्रागंतुकों के प्रति उनकी ढिलाई का फल । परंतु जब वे बनारस में अपने मित्र वाबू श्रीप्रकाश के यहाँ ठहरते हैं, तो उनकी सब व्यवस्था ठीक रहती है । मिलने जुलने वाले और दर्शक गण यहाँ भी उन्हें बेरे रहते हैं, परतु न जाने कैसे उनका सब प्रवध, जिसमें समय पर सोना भी सम्मिलित है, मानो जादू के द्वारा ठीक २ होता रहता है । प्राचार्य जी अपना जीवन बीमा कराया है या नहीं, यह तो अज्ञात है, परंतु यदि कराया हो, तो उनकी बीमा कम्पनी के लिए यह एक ज्ञातव्य भेद है ।