पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२५१

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( २२४ ) धारामभाई कानून का डर उसके नियमों में होना है, उसी प्रकार स्वाधीनता के ब्रिटिश प्रस्ताव का डङ्क उन नथाकथित मैत्री सन्धि में होता है जो अनिवार्य रूप से समझौते के साथ लगी रहती है । मैं ऐसा कह कर ब्रिटिश राजनीतिज्ञों पर छींटे नहीं फेक रहा हूँ। मैं नो केवल एक विख्यात, अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर लिग्वने वाले लेचक का मन उद्धृत कर रहा हूँ जिस पर ब्रिटिश लोगों के प्रति कोई विरोधी मात्र रचने का दोष नहीं लगाया जा सकता। मैं अपने पाटकों से श्री० जी० एम. गैथोर्न हार्डी की पुस्तक 'अन्तर्राष्ट्रीय मामलों का संक्षिप्त इतिहास, १९२० से १६३८ तक" में निम्न अव- नरण पर दृष्टिपात करने के लिए कहूंगा ! “जब ब्रिटिश कूटनीति, जं. स्वभाव से सनझोता-प्रेमी है, स्वतन्त्रता की छाया मात्र देकर वास्तविक नियन्त्रण अपने हाथ में रखना चाहती है तब वह सन्धि के आय का अवलम्बन करती है। फरवरी सन् १९२२ में ब्रिटेन ने मिश्र ने कहा था कि वह अब से एक स्वतंत्र सर्वमत्तात्मक राज्य होगा, परन्तु उपयुक्त मुहे अपने हाथ में रग्य कर उसने उम की स्वतंत्रता को सीमित भी कर दिया था। ब्रिटिश हितों की सुरक्षा और साम्राज्य की यातायात-पक्ति की रक्षा के लिए मिश्र की भूमि पर ब्रिटिश सेनाएं रखी गई, परन्तु माथ ही मन्धि में यह कहा गया कि ब्रिटिश सैनिकों की उपस्थिति से मिश्र के मर्वननात्मक अधिकारों में कोई दबल नहीं पड़ेगा । इराक और आयरलैंड में भी यही मन्धि की तरकीब बरती गई। प्रायर. लैंड में तो स्वाधीनता की घोषणा भी नहीं की गई क्योंकि उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण ब्रिटिश दृष्टि में उसका स्वतन्त्र होना न जेंचा । ब्रिटेन की सुरक्षा के लिए आयरलैंड महत्त्वपूर्ण था, और इसलिए छाया-मात्र स्वतन्त्रता भी नहीं दी सकती थी। मूल देश होने के कारण वह उपनिवेश नहीं हो सकता था, अतः उसे जल-सना