पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२५०

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( २२३ ) पर लटू हो गया है जिसका स्वरूप सामन्तशाही है और जो इस देश में एक प्रतिक्रियावादी शक्ति है । भारत-मंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा है कि स्वतन्त्र भारत को जमा जी के साथ भुगतान को भी स्वीकार करना पड़ेगा। हम जानते हैं कि राजवर्ग ऐसे ही भुगतानों में से एक है । उसे देश की प्रगतिशील शक्तियों से लोहा लेने के लिए ऊँचा चढ़ाया गया है। उसे बनाये रखने के लिए पावन सन्धि-अधिकारों की दुहाई दा गई है । दूसरी ऐसी ही हत्या साम्प्रदायिक वैमनस्य है जो ब्रिटिश शासन की देन है। हम यथासम्भव शीत्र इन ग्राफनों का अन्न करना चाहते हैं । हिन्दू और मुसलमान साम्प्रदायिक मेल स्थापित करेगे और एक राष्ट्रीय जाति बन जायगे। राज-वर्ग समाप्त कर दिया जायगा, क्योंकि वह वर्तमान युग से मेल नहीं खाता। जितने भी प्रजातन्त्र विरोधी तत्व हैं उनको दबा दिया जायगा जिसमें प्रजातन्त्र चल सके और पना सके । अतः यह आवश्यक है कि सन्धि-अधिकारों को अधिक महत्व न दिया जाय। हम उनका पावनता की असलियत जानते हैं। भारतीय जनतन्त्रीय राज्य को भारतीय रियासतों में सर्वोपरि सत्ता का स्थान ले लेना चाहिए। वह इस बात का प्रबन्ध करेगा कि रियासतों में प्रारम्भ में प्रजात त्रीय विधान तो हो ही जाय। इस लेख का विशेष उद्देश्य जनता का ध्यान इस प्रश्न के एक ऐसे पहलू के प्रति आकर्षित करने का है जिस पर उचित बल नहीं दिया गया है । मेरा तात्पर्य उस तथाकथित मैत्री सन्धि से है जिसका प्रधानमंत्री के वक्तव्य में जिक्र किया गया है। यह ब्रिटिश लोगों की प्रिय चाल है कि वे नाम-मात्र की स्वाधीनता देकर समझौते की धाराओं में वास्तविक नियन्त्रण और सत्ता अपने हाथों में रख लेते हैं । जैसे विच्छू का डङ्क पूँ छ में, और