पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२५५

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( २२८ ) पंजा जमाये रखना चाहता है । यह सम्भव है कि वह उत्तरी ईरान मे रूस के हितों को न्यायोचित मानकर इस आधार पर उससे समझौता कर ले। ये लोग प्रतिद्वन्दी शक्तियों में पारस्परिक समझौतों के द्वारा प्रभाव-क्षेत्रों का वितरण करके शान्ति कायम रखने का प्रयास करेंगे, सामाज्यवाद को छोड़कर और एक नवीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की नींव डालकर नहीं। यह हमको सन् १६०७ वाली पुरानी बात की याद दिलाता है जब इङ्गलैण्ड और जारशाही रूस के बीच के झगड़े की सब प्रमुख बातें इसी प्रकार तय की गई थीं । ब्रिटिश दायरे में रहकर हम ब्रिटिश सामाज्यवाद के पापों के भागी ही न बनेंगे, बल्कि साथ ही इङ्गलैण्ड के युद्धों में भी अपने आपको फंसा लेंगे। यह दलील दी जा सकती है कि संसार की सुरक्षा की खातिर भारत के तटों को अरक्षित नहीं रहने दिया जा सकता। इसका मै यह उत्तर दूंगा कि कि जापान का पतन होने के पश्चात् यदि भारतीय तटों को कुछ समय लिए अरक्षित भी छोड़ दिया जाय तो कोई हानि नहीं है ! यदि आज की बड़ी सामुद्रिक शक्तियाँ- इङ्गलैण्ड और अमरीका शान्तिपूर्ण उद्देश्यों वाली हैं तो भारतीय तट की सुर शा-अरक्षा से कुछ बनता बिगड़ता नही | रूस एक स्थल शक्ति है, जल शक्ति नहीं। इसके अतिरिक्त रूस भारत की सर्वसत्तात्मकता का सम्मान करेगा यदि ये अन्य दो बड़ी शक्तियाँ भी उसका ठीक ठीक सम्मान करें। यह भी बता देना उचित होगा कि तट रक्षा के लिए काम चलाऊ बेड़ा तैयार करने में अधिक समय नहीं लगेगा। अतः हम पारस्परिक रक्षा के लिए ब्रिटेन से गठ-बन्धन नहीं कर सकते । ऐसा करना निश्चय ही रूस सन्देह-युक्त और