पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२६१

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( २३४ ) हमें यह भी निर्णय करना है कि हम अान्दोलन को सहज स्वभाविक रूप से चलने देना चाहते हैं अथवा उसे एक निर्दिष्ट, उद्देश्यपूर्ण स्वरूप देना चाहते हैं। यह सत्य है कि वह तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसे ठीक दिशा में चलाने के लिये दक्ष कार्यकर्ता न हों। यदि यह बात सही है तो कांग्रेस को एक प्रबल और अनु- शासन-बद्ध काति-साधन में परिवर्तित किया जाना चाहिये । उसे एक वास्तविक, सक्रिय और कठोर अनुशासन वाली राज- नैतिक शक्ति बनना चाहिये। परन्नु कांग्रेस की परम्पराओं और हमारे अग्रगण्य नेताओं के कथनों से हमें ऐसा प्रतीत होगा कि कांग्रेस एक सहज-स्फुटित आन्दोलन में विश्वास करती है और उसकी दिशा और गति को नियन्त्रित करने के पक्ष में नहीं है। परन्तु यह कहना अधिक सत्य होगा कि वह इस प्रकार के जन-आंदोलन के पक्ष में नहीं है। वह निश्चय ही यह नहीं चाहती कि जनता अपना क्रांतिकारी पथ स्वयं टटोल ले । वह किसी प्रकार असहयोग अथवा नियमित रूप की सविनय अवज्ञा से ही सन्तुष्ट रहेगी। परन्तु यह पूछना उचित ही है कि क्या इस प्रकार के असह- योग और विरोध से काम चल सकेगा। कांग्रेस को प्रभावशाली बनाने के लिए उसको पुनर्सङ्गठित और पुनर्जीवित किया जाना चाहिये । उममें राजनीतिक शिथिलता आती जा रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपने लक्ष्य को प्रांखों से श्रोझल किये दे रहे हैं, और बीच के पड़ाव को ही अपनी यात्रा का अन्त समझ रहे हैं। हमारे अधिकांश कार्यकर्त्तानों पर अगुअा बनने का भूत सवार हो गया है, और ये प्रभाव और अधिकार के छोटे २ पदों पर दांत लगाये रहते हैं । पार्लियामेंटीय कार्यक्रम अपना भ्रष्ट