पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२६४

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( २३७ ) जाता जो सब महत्वपूर्ण तत्वों को मान्य हो, तब तक गड़बड़ और अव्यवस्था का समय चलता रहेगा। ऐसे समय में केवल ऐसी संस्था ही सफलतापूर्वक इस परिस्थिति को सँभाल सकेगी जिसमें सब पक्षों का महत्तम समापवर्त्य निकालने की बुद्धिमत्ता और साहस हो, जी प्रमुख तत्वों को सन्तुट कर सके और लक्ष्यों ओर उद्देश्यों की सर्वस्पर्शी व्याख्या कर सके । इस अवस्था का इलाज अाधार को और भी संकीर्ण करने में नहीं हैं, बल्कि उसे विस्तृत बना कर एक सामञ्जस्य हूँढ़ने में है । जब राष्ट्रीय संवर्ष के कारण नवीन शक्तियों का उदय होता है तब नवीन सामञ्जस्य सदैव करना प्रड़ता है। परतु यह सामञ्जस्य सम्प्रदायवादी न होना चाहिए । धर्म को केवल एक पन्थ न बन जाना चाहिए । केवल इसी प्रकार एक पन्थवाद में सफलतापूर्वक लड़ा जा सकता है, योर धर्म अपने अन्तर में अनेक मत-मतान्तरों को प्रथम दे सकता है, जो किंचित दार्शनिक और अनुशासन-विषयक मतभेदों के होते हुए भी उन मूलभूत सिद्धान्तों पर एक मत होते हैं जिनका धर्म प्रति दिन करता है। बस कुछ शब्द साम्प्रदायिक लोगों से कहने हैं । यह सत्य है कि क्रांतिकारी आन्दोलन के लिए एक सैद्धांतिक अाधार आवश्यक है । परन्तु हमें कट्टरपंथी नहीं होना चाहिए और अनुभव से शिक्षा लेनी चाहिए । सिद्धान्त ओर व्यवहार दोनों एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं । लेनिन को गेटे के इस कथन को दुहराने का बड़ा चाव था कि "सिद्धान्त धूमिल होते हैं. परन्तु जीवन का वृक्ष सदैव हरा रहता है' ! उसने यह भी कहा है कि रत्ती भर अाचरण मनों काल्पनिक विचारों से अच्छा है । यदि सिद्धान्त को व्यवहार से पृथक कर दिया जाय तो थोथे विचारों का जमघट खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार सिद्धान्तहीन और आदर्शहीन क्रिया अन्धी और अएट- सएट होती है इसके अतिरिक्त व्यवहार से, कर्म करने से, विचारों