पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२६३

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( २३६ ) हिन्दू और मुसलमान साम्प्रदायिक समस्या को वैज्ञानिक ढङ्ग से सुलझाने का प्रयास किया जाना चाहिये । इस मसले को वह झूठी कल्पना करके सरल बनाना ठीक नहीं कि तीसरी पार्टी के चले जाने से यह समस्या आप ही सुलझ जायगी, अथवा जिन्ना साहब मुस्लिम लीग की आसुरी प्रेरणा हैं । हममें से बहुतेरे मुस्लिम मस्तिष्क से न तो परिचित हैं और न परिचित होने का प्रयास करते हैं । हमें ज्ञात होना चाहिये कि मुस्लिम इतिहास का निर्माण कुछ अदृश्य शक्तियां कर रही हैं और हमें उन्हें समझने का प्रयत्न करना चाहिये । जो समस्यायें हमसे घनिष्ट सम्बन्ध रखती हैं, उनका अध्ययन करने के लिए केन्द्र में एक कार्यपटु सचिवालय (Socretariat) होना चाहिये । सामंजस्य-सम्प्रदायवाद नहीं हमें मानना चाहिये कि दुनियां एक संघर्ष और कशमकश के समय में होकर गुजर रही है, और भारत इसका कोई अपवाद नहीं है । एक शक्तिशाली विद्यार्थी अांदोलन सदैव सभ्यता और सामा- जिक ढांचे के मध्य समन्वयाभाव का परिचायक होता है । वह राजनैतिक और सामाजिक अवस्थाओं की बढ़ती हुई डांवाडोल स्थिति को प्रतिबिम्बित करता है। परम्परागत मर्यादाओं के विरुद्ध युवक-विद्रोह आकमिक घटना नहीं है और उसे यह कह कर नहीं टाला जा सकता कि वर्तमान पीढ़ी का नैतिक पतन हो गया है । हमें पूछना चाहिए कि वृद्धों और युवकों के बीच इतना अन्तर क्यों है और क्यों युवक जन नवीन विचारों, आदर्शों और मूल्यों का समर्थन करते हैं। हम एक युग के अन्तिम छोर पर खड़े हैं और जब तक एक संतुलन स्थापित नहीं होता और एक ऐसा नवीन समन्वय नहीं हो