पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२६६

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( २३६ ) की मुक्ति का उद्देश्य लिए हुये हैं। यदि हम उनकी ठीक ठीक सेवा करना चाहते हैं तो हमें चाहिये कि हम उन्हें संरक्षण में न रखकर अपने पैरों पर खड़े कर दें, जिससे वे अपना भाग्य निर्माण कर सकें और उच्चतर संस्कृति का विश्वव्यापी आन्दोलन उठा सकें । हमें यह भी याद रखना चाहिये, कि इतिहास ने जो कार्य- भार उनके ऊपर डाला है, उसे सम्मादित करने के लिए उन्हें दैनिक भोजन से भी अधिक आवश्यकता साहस और स्वाधीनता की है। हम विदेशी उत्पीड़न की व्यथा को दीर्घकाल से सहते पाये हैं। जिस युग में हम रहते हैं, उसकी प्रगति में उचित हाथ वंटाने से हमें वंचित रखा गया । यदि गतकालीन बुराइयों का परिष्कार करना है और यदि हमें स्वतन्त्र विकास का अधिकार प्राप्त करना है. और यदि हमें जनसाधारण को अचा उठाना है तो हमें अपने राष्ट्र के लिए पूर्व स्वाधीनता प्राप्त करनी चाहिये । परन्तु यह कार्य हमें जनसाधारण को दूर फेंककर अथवा उनके पूर्णतम विकास की अवस्थाओं को नष्ट करके नहीं करना है उनकी राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए लड़ते हुये भी, हमें उनकी सामाजिक मुक्ति के निमित्त संगठित प्रयास का श्राधार जुटाने का प्रयत्न करना चाहिये । स्वराज्य का अर्थ होना चाहिए जनसाधारण के लिए भी, आत्मनियन्त्रण और श्रात्म-निर्णय । 1