पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२९१

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की समस्या को कभी न मुलझा सकेगी । उत्पादन के क्षेत्र में अव्यवस्था होने से समाज में अव्यवस्था ही या सकती है। अतः समाजवादी संयोजना की बुराइयों को प्रजातन्त्रीय पद्धतियों का विकास करके रोकना चाहेंगे। यह सम्भव है कि प्रजातन्त्रीय भावना भरने के लिए वे मिश्रित अर्थव्यवस्था का प्रतिपादन करें और सहकारी संस्थाओं, ट्रेडयूनियनों, और पब्लिक कार्पोरेशनों को प्रोत्साहन दें । परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि उनके सारे प्रयत्न आर्थिक सुरक्षा और स्वतन्त्रता दोनों की सिद्धि करने के लिए होंगे । मैं जानता हूं कि यह कार्य एक समस्या है, जिसमें कठिनाइयां भरी पड़ी हैं, और जिसका हल करने में उत्तमोत्तम मस्तिष्क लगे हुए हैं । परन्तु यदि माननीय मूल्यों को बनाए रखना है और प्रजातन्त्रीय जीवन-प्रणाली को चलाना है तो इस समस्या का समा- धान करना ही होगा। जैसा मैंने ऊपर कहा है, जवाहरलाल जी समाजवाद की किसी मानी हुई शाखा के अनुयायी नहीं हैं । यदि मुझसे उनकी विचारधारा को एक सरल शब्द समूह में समेट कर रखने के लिए कहा जाय तो मैं कहूंगा कि वह 'प्रजातन्त्रीय समाज वाद' हैं । उनके कर्म समाजवादी पादशों से प्रेरित होते हैं क्योंकि उनकी सम्पति में केवल वे ही श्रादर्श शाश्वत माननीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और उनके विना एक पूर्ण, स्वतन्त्र और सहकारी जीवन असम्भव है। भारत में वे सामन्तशाही अर्थव्यवस्था का तत्काल अन्त करके राज्य और खेतिहर के बीच के मुनाफाखोर-वर्ग समाप्ति करना चाहते हैं । परन्तु फिलहाल, वे प्रमुख उद्योगों के सामाजिक करण से सन्तुष्ट हो जायंगे और वैयक्तिक अध्यवसाय के लिए एक आर्थिक