पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/३०

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समाजवाद और राष्ट्रीय अान्दोलन (१९३४) बन्धुश्री, समाजवादा कान्फ्रेंस के इस प्रथम अधिवेशन के सभापतित्व के लिए आनन्त्रित करके आपने जो सम्मान मुभ दिया है, उसका में हृदय से श्राभारी हूँ। परन्तु यह पद इतना भारी और उत्तरद यित्वपूर्ण है, कि मैं कह नहीं सकता कि इस पर मुझं बिठाने के लिए आपका धन्यवाद दु याबा? अच्छा तो यह होता कि यह भार किसी अधिक योग्य व्यक्ति पर डाला जाता, परन्तु नियति का कुटिलता में मुझे ही इसे वहन करना पड़ रहा है । कठिनाई तो यह है कि आज हमारे परम सुहृद, परोिखत जवाहरलाल नेहरू भी यहाँ उपस्थित नहीं हैं, जिनका सापरामर्श और पथ-प्रदर्शन इस अवसर पर हमारे लिए अमूल्य होता । काश, में अपने को इस समस्त सम्मान के योग्य अनुभव कर सकता। फिर भी मुझे आशा है कि आपके सहयोग और सोहार्द से में इसके अनु- रूप आचरण करने में सफल हो सकूँगा और हम अपनी समस्त कार्यवाही अवसर के अनुकूल गम्भीरता से सम्पादित करके अपने निर्णयों से देश की स्वातन्त्र्य प्रगति में सहायक हो सकेंगे। हम ऐसे समय पर एकत्रित हुए है जब कि हमारी राष्ट्रीय संस्था एक संकट-काल में से गुजर रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ठक कल बड़े ही महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करने के लिए हो रही है, और हमारा यह कर्तव्य है कि हम इस सम्मेलन में यह निश्चय करें कि उस महती सभा के महान निर्णयों में हमारा क्या भाग होगा।