पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/३१

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प्रभाव में गष्ट्रीय आन्दोलन को समाजवाद की ओर ले जाने के हमारे प्रयत्न पर यह टिप्पणी की जाती है कि समाजवाद का राष्ट्रीयता से समन्वय करना कठिन है और यदि हम अपने देश में समाजवाद लाना चाहते है, तो हम क्यो न अपने को कांग्रेस से पृथक एक स्वतन्त्र समुदाय के प में संगठित करें, और इस प्रकार एक म' यवांय संस्था के प्रतिक्रियान्मक मुक्त रहकर कार्य कर? इसका उत्तर यह है कि हम ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध उन्न महान् राष्ट्रीय आन्दोलन की धारा में पृथक रहना नहीं चाहते जिसका मूर्तिमान स्वरूप श्राज कांग्रेस है । हम यह मानते है कि आज का कांग्रेस में बुराइयों और कमियाँ है, परन्तु वह सरलता गं देश की सबसे बड़ा क्रान्तिकारी शक्ति बन सकती है । हमे यह न भूलना चाहिये कि भारतीय जन-संघर्ष अभी मध्यवर्गीय क्रान्ति को अवस्था में ही है, अतः जिस राष्ट्रीय जागृति का प्रतिनिधित्व कांग्रेस करती है, उसमे अपने को पृथक कर लेना हमारे लिए घातक ही सिद्ध होगा। सच्चे मार्क्सवादी का एक बड़ा विशेषता यह होती है कि उसका दृष्टिकादियों का संकीर्णता में जकड़ा हुश्रा नहीं होता। मार्क्सवाद का द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त एक जीवित और लचकदार सिद्धान्त है, और उसके अनुयायी की परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनशील होना पड़ता है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह अवसर- बादी होता है, अथवा अपने सिदान्तों का सौदा करने को तैयार रहता है। वरन सचाई यह है कि वह अपने अस्लिम येय को कभी आंख में श्रोमल नहीं होने देता, प्रत्येक अवस्था को ऊँच-नीच से अवगत रहता है और केवल सैद्धान्तिक कट्टरला के कारण वह किमी भी ऐसे. लाभ को तिलाबलि नही देता जो समाजवाद के अन्तिम 'येय की प्राप्ति में साधक हो। वह कभी भी निम्न मध्यवर्ग के साथ आजादी की लड़ाई में कन्धा भिड़ाकर लड़ने मे इन्कार नहीं करेंगा, यदि उस लड़ाई में विदशा सत्ता