पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/३३

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1 भारतवासी पहले ही विखल और निर्बल हैं, अतः यह और भी आवश्यक है कि हम सब वर्गो और समुदायों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न करें और स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिए शत्रु से संगठित मोर्चा ले व्यक्ति यह भी कहेंगे कि इस संकट के समय में समाजवाद का प्रचार करके हम कतिपय वर्गों की सहानुभूति खो देंगे। कुछ हमें यह सलाह देंगे कि समाजवाद फैलाने के कार्य को अनिश्चित भविष्य के लिए स्थगित करके अपनी सम्पूर्ण शक्ति स्वतन्त्रता प्राप्त करने में लगा दें। हम अपने इन मित्रों की सद्भावनाओं पर कोई सन्देह नहीं करते जो इस प्रकार के परा- मर्थ हमें देते हैं, और जो समाज में शान्ति बनाये रखने के अत्यधिक इच्छुक प्रतीत होते हैं । परन्तु मेरी समझ में यह नहीं आता कि पीड़ितों में वर्ग-भावना भरने के प्रयत्नों पर इनको आपत्ति क्यों है ? सम्भवतः ये लोग भूल जाते हैं कि उच्चश्रेणी वालों को, जिनके पास देश की सम्पूर्ण अर्थ- शक्ति है और जिनके पक्ष में वर्तमान सामाजिक परिस्थितियां हैं, वर्ग-भावना की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उस से रहित हो कर ही वे अपने हिता की रक्षा में सम्पूर्ण समाज के हितों को सुरक्षित अनुभव कर सकते हैं यह सब के हित में आचरण करने का विश्वास उन्हें सन्तोष और शक्ति प्रदान करता है। परन्तु वास्तव में वे आचरण करते हैं अपने वर्ग के ही हितों में, और इसका परिचय तब मिलता है जब उनके किन्ही विशेषा- धिकारों पर श्राघात होता है। उस समय वे सब सम्मिलित होकर उका प्रतिरोध करते हैं। परन्तु जो शोषित वर्ग हैं वे उनकी तरह परार्थ-भावना का खिलवाड़ नहीं कर सकते ; उनमें तो वर्ग-चेतना होनी चाहिये, क्योंकि उसके विना वै कोई ऐसा शक्तिशाली संगठन नहीं बना सकते, जिससे उन्हें शक्ति और सत्ता प्राप्त हो सके। जहाँ तक एकता का प्रश्न है, मैं कहता हूँ कि एकता तभी मूल्यवान् है जब वह शक्ति का साधन बने, और यह तभी सम्भव है जब कि एक होने