पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/३६

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(१) सम्पूर्ण राष्ट्र का बहाव तो उधर ही होगा, क्योंकि स्वातन्त्र्य संग्राम को चलाने का अधिकाधिक दायित्व जनता के ऊपर पा रहा है। अब तक कांग्रेसवाले जनता के पास जनतन्त्र और राजनीतिक स्वतन्त्रता का संदेश लेकर जाते है, परन्तु इन बड़े-बड़े शब्दों से जनता की तन्द्रा नहीं दट पाई, और इसलिये कोई सन्तोपजनक फल नहीं मिला। यथार्थ में, ये अमूर्त विचार जनसाधारण के लिए कोई अर्थ नहीं रखते । उनको तो स्वतन्त्रता- संग्राम में तभी लाया जा सकता है जब उनके सामने ठोस आर्थिक बातें रखी जाय। जब कभी जनता उठकर खड़ी हुई है, उसका नारा किसी आर्थिक संकट का निवारण ही रहा है, स्वतन्त्रता और समानता का नहीं । श्रमिकों का महत्त्व भारत में अमिक आन्दोलन अपने एंड-यूनियन रूप से आगे बढ़ चुका है । श्रमिक वर्ग में शनैः शनैः राजनैतिक चेतना का विकास हो रहा है। कुछ प्रान्तों में श्रमिकों की पार्टियाँ बन चुकी हैं और एक अखिल भारतीय श्रमिक पाटी बनाने का कदम भी उठाया जा चुका है। भारतीय मजदूर पूँजीवाद को पछाड़ने के लिए संगठित हो रहा है और उसने सब प्रकार के साम्राज्यवादी और पूँजीवादी शोषण के विरुद्ध हटकर संघर्ष करने का सला किया है। अखिल भारतीय श्रमिक पार्टी ने अपने सामने पहला उद्देश्य श्रमिक वर्ग के दृष्टिकोण से पूर्ण राष्ट्रीय स्वतन्त्रता प्राप्त करने का खखा है। यह श्रमिक-वर्ग का गजनैतिक ध्येय है, जिसकी प्राप्ति के लिए वह गष्ट्रीय आन्दोलन के हरायल मे रहना चाहता है और उसका नेतृत्त्व करना चाहता है। साम्राज्यवाद और उसके भारतीय पोषकों के विरुद्ध उसका दावा है कि वह कृषकवर्ग को भी अपने साथ लिए हुए है, और उसकी माँगों में कृषकों की मांग भी शामिल है । मैं मानता हूँ कि भारत मे श्रमिक आन्दोलन को अमी बहुत लम्बा .