पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मी नहीं, क्योंकि न जाने कैसे हमारी यह धारणा बन गई है कि इन कार- रखानों के भागड़ो में हमे नहीं पड़ना चाहिये । परन्तु क्या यह श्रमिक-वर्ग का विश्वास प्राप्त करने का मार्ग है ? फिर यदि श्रमिक संघर्षों का हमारे आन्दालन से कोई साक्यय (organic) सम्बन्ध न हो, तो इसमें श्राश्चर्य क्या है ? वे अपने अलग रास्ते पर चलते है, यद्यपि यह अवश्य है कि उनका कोई भी विशाल अान्दोलन पाने वाले देशव्यापी राजनैतिक आन्दो- लन का सूचक होता है । कांग्रेस ने अब तक जितने भी राजनैतिक संघर्ष किये हैं, उनके पृष्ठभाग में हड़तालें, और प्रौद्योगिक असन्तोष की अन्य हलचलें रही है । जब उन दोनों आन्दोलनों का संयोग हुआ है, तभी राष्ट्रीय संघर्ष अपनी चरमावस्था को पहुंचा है । यदि उन दोनों शक्तियों का व्यक्त रूप में एक दूसरी से जोड़ दिया जाय, तो संघर्प अधिक लम्बा, तीना, और प्रभावोत्पादक बन सकेगा। देश की वस्तुस्थिति क्रान्ति के उप- न्युक्ल बनी हुई है, और यदि हम शक्तियों का संगठन कर पाते तो जो मैगश्य आज हममे दिखाई देता है, वह न होता । एसी नीति से हमें एक लाभ और होता। भारत का मजदूर ग्रामों में प्राता है और नगर में रहते हुए भी उसके हृदय में अपना ग्राम ही यसता रहता है। ऐसी दशा में वह गाँवों में क्रान्ति का अग्रदूत बन सकता है। रूस के कृषक-यान्दोलन का इतिहास बताता है कि वह आन्दोलन विशेषकर उन्हा स्थानों में अधिक तीव्र था जहाँ के नेता पहले नगरों में मजदूर रह कर वहां के प्रचार से प्रभावित हो चुके थे। जो नई विचारधारा देश में लहरा रही है, काँग्रेस को उसके साय चलना चाहिये । केवल इसी तरह से हम विश्व की उन धागों से अपने को जोड़ सकेंगे जो पुरातन में से नवीन समाज की रचना करने में लगी हुई हैं। वर्तमान विश्व-स्थिति का हमारे आन्दोलन से घनिष्ट सम्बन्ध है- विशेषकर समाजवादी आन्दोलन से। इसलिये अपने आन्दोलन के