पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/५१

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परन्तु देन है, गलत समझी गई है। इस भौतिकवादी शब्द के प्रयोग से प्रायः यह समझ लिया जाता है कि वैज्ञानिक समाजवाद जिसका मार्क्स ने प्रचार किया था, एक भौतिकवादी सिद्धान्त है । लोग कहते है कि मार्स ने श्रात्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं किया है, उसकी आध्यात्मिक मूल्यों में कोई श्रास्था नहीं थी, और उसके लिए विचारों की शक्ति का कोई महत्व न था । यह कहा जाता है कि मार्स ने केवल जड़ प्रकृति का अस्तित्व माना है और इतिहास की गति और विकास मे उसी का प्रपुत्व रक्खा है। ये सभी कथन त्रुटिपूर्ण है। मार्स चेतन और जड़ दोनों को इतिहास को बनाने वाली शक्तियाँ मानता है । वह मनुष्य को इतिहास की प्रक्रिया मे रचनात्मक कर्ता मानता है । मनुष्य की स्वतन्त्र क्रियाशक्ति का उसके दर्शन में स्थान है, उसका कहना है कि बाय स्थिति मानव-मस्तिष्क के कार्य की सीमा निर्धारित करती है। आर्थिक बाती का इतिहास की प्रगति में बड़ा हाथ रहता है, परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि और कोई तत्त्व उसमे योग मही देते । मार्स का कहना केवल यह है कि किसी भी विचार का इतिहास को धारा पर तभी प्रभाव पड़ सकता है जब वह कार्य रूप में परिणत होकर प्रत्यक्ष हो जाता है। उसने चेतन और जड़ के महत्त्व पर तुलनात्मक विचार कही नहीं किया है। दोनों का एक-सा महत्त्व है। मनुष्य बाय स्थिति के विना कुछ नहीं कर सकता और बाह्य स्थिति मनुष्य के क्रियात्मक सहयोग के विना वांछित फल स्वयमेव नहीं दे सकती। यथार्थ में भार्स ने अपनी इतिहास की व्याख्या से भौतिकवादी शब्द इसलिये रक्खा है जिसमे उसका सिद्धान्त होगिल के उसे श्रादर्शवाद से पृथक भासित हो सके जिसमे दृश्यमान जगत् के अस्तित्व की अवहेलना करके केवल विचार को प्रधानता दी गई है। मार्क्स मानता है कि इतिहास के क्रमिक विकास में बहुत मे तत्व योग देते है । नैतिक और राजनेतिक ढाँचे उत्पादन-प्रणाली मे ही निकलते