पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/५६

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स्पष्ट रूप में देखता हो । इस नवीन अनुभव से हमे लाभ होगा, हम अपनी अनेक विचार गुत्थियों को मुलझा सकेंगे, और हमारी विचार धाग में यथार्थवाद का वह पुट श्रा जायगा जो किमी भी क्रांतिकारी श्रान्दोलन के लिए अत्यन्त आवश्यक है । सबसे अधिक आवश्यकता तो इस बात की है कि हम यह न मूले कि कर्म करना हमारा मूलमन्त्र है और संघर्ष में ही अधिकाधिक फा मिलता है । लेनिन ने कहा है-"यदि शोषित जनता के सामने ऐसे उदाहरण न होते, जहाँ विभिन्न उद्योगों के श्रमजीविधी ने तुरन्त श्रानी दशा सुधारने के लिए पूँजीपतियों को बाध्य कर दिया था, तो उनको कभी भी भारी संख्या में क्रांति की और खीच कर लाना सम्भव न होता । अतः यह श्रावश्यक है कि हम मजदूरो और कृपको की वर्तमान संस्थाओं में सम्मिलित हो, और जहाँ आवश्यक हो, वहाँ उनकी नवीन संस्थाएँ बनाएँ । हम अपने मामने जो कार्य है उमे तभी कर सकते जब हम समाज- वाद के उद्देश्यों और सिद्धान्तों को सममें, मास के बताये हुए द्वन्द्वात्मक तरीके को स्थिति के वास्तविक ज्ञान के लिए काम में लाना सीखें, और फिर उस ज्ञान को अपने कार्य का आधार बनाएँ । सबसे अधिक हमे रूढ़िवाद और सम्प्रदायवाद से बचना चाहिये । स्वगीय समाजवाद अथवा सामाजिक सुधारवाद मे दूर रहकर हमें वैज्ञानिक समाजवाद का प्राधार लेना चाहिये । वर्तमान व्यवस्था में कुछ ऊपरी हेर-फेर से हो संतुष्ट हो जाना हमारा काम नहीं । स्थिति का तकाजा है कि मौजूदा सामाजिक ढांचे में आमूल परि- वर्तन किया जाय । इससे कम में काम नहीं चलेगा। हम एक ऐसी मुसंगठित पार्टी का निर्माण करने का प्रयत्न करना चाहिये जो अपने ध्येय और उसकी प्राप्ति के उपायों को भला भांति जानती हो, और जिगे नट करना ही नही, निर्माण करना भी प्राता हो । विना ध्येय और साधनों के स्पष्ट ज्ञान के सफलता का मिलना असम्भव है।