पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/८२

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हमें परस्पर गाली गलौज करके अथवा जनता से ढपोल संखी वायद करके अथवा अन्य बोले तरीकों से एक दूसरे को पछाड़ने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये । काँग्रेमी होने की हैसियत से हमें इस बात का ध्यान रखना है कि कॉग्रेस स्वार्थी अवसरवादियों का अड्डा न वन जाय । इसी प्रकार किमान नेताओं को भी यह देखना है कि उनकी संस्था में ऐसे जले भुने असन्तुष्ट व्यक्ति न घुग बॉय, जो उसे अपने मतलब गॉठने का साधन बना लें। कृषक-वर्ग एकरम नहीं है। उसमें अनेक विभाग और विभेद हैं जिनके हित कभी कभी ग्रापस में टकरा जाने हैं। अतः प्रश्न उठता है कि संस्था कौन से उपवर्ग की हो ? यदि सभी उपवगा को उसमें स्थान दिया जाय, ना उनके विभिन्न हितों का सामञ्जस्य और समन्वय करते. अान्तरिक झगडां से बचना चाहिये । हमारा अाज का कार्य सम्पूर्ण कृपक वर्ग को अपने साथ ले लेना है । उपयुक्त प्रश्न करते समय क्रान्तिवादियों की हैसियत से हम केवल सामाजिक न्याय की भावना में अपने को ही नहीं बहने दे सकते । यदि भावना से प्रेरित होकर ही हम अपने निश्चय और कार्य करते तो हम पहिले खेती के मजदूरों और ग्राम श्रमिकों को सगटित करने की सोचते जो सबसे कधिक पीड़ित और शोषित ग्रामीण वर्ग है और सबसे अधिक निकट अार्थिक और सामाजिक दासता का शिकार बना हुआ है। न्यायबुद्धि हमें अवश्य सबस अधिक पीड़ितों के हितों की पहिले रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है, परन्तु यदि हम ऐसा करें तो हम उस विशाल शोषित समुदाय की उपेक्षा करेंगे जिसमें छोटे और मध्यम किसान और अल्प प्राय वाले जमींदार हैं। कृषकों का अधिकांश समुदाय उस अवस्था में सामाज्यवाद विरोधी संघर्ष से पृथक रह जायगा और हम अपना