पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

एक ऐसा साथी खो देगे जो ग्राम के दरिद्र वर्ग से कहीं अधिक मूल्यवान् है। एक अन्य दृष्टि से भी ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान अवस्था में ग्रामों के दरिद्र वर्ग का सर्वोत्तम हित साधन सम्पूर्ण कृपक- समुदाय का सामूहिक संचालन करके ही किया जा सकता है, उसे अनेक टुकड़ों में बॉटकर एक दूसरे का कट्टर विरोधी बनाकर नहीं । यदि भूमि-श्रमिक भूमिविहीन है तो इसमें कृपकों का कोई दोष नहीं है । उसकी भूमि प्राप्त करने की लालसा को तो राज्य ही पूरा कर सकता है, और उसकी पूर्ति के लिए राजनैतिक कार्यवाही अावश्यक होगी। औपनिवेशिक शोपण भी जो विदेशी साम्राज्यवाद ने उसके ऊपर भी समान रूप से लागू कर रखा है, राजनैतिक कार्यवाही से ही समात किया जा सकता है, और यह स्पष्ट है कि वह कार्यवाही तव तक राफल नहीं होगी, जब तक सम्पूर्ण कृषक समुदाय उसमें भाग न ले। भूमिश्रमिकों की मजदूरी का प्रश्न तब तक सन्तोषप्रद रूप से हल नहीं किया जा सकता जब तक कृषकों की आय में पर्याप्त वृद्धि न हो । आज तो बेचारे कृपक के लिए अपने छोटे से भूभाग में खेती करके अपना पेट पालन कठिन है। उस छोटे से भूभाग में वह अपने को होम देता है, परन्तु अथक परिश्रम करके भी वह उसमें से साधारण जीवन-निर्वाह की सामग्री भी नहीं जुटा पाता। उसकी मजदूरी देने की सामर्थ्य बहुत ही सीमित है और जब तक वह नहीं बढ़ाई जाती, तब तक उसके लिए यह असम्भव है कि वह अपने उन अधिक अभागे भाइयों को अधिक पारिश्रामिक दे सके जो मजदूरी करके जीवन-यापन करते हैं, और जिनके पास अामदनी का और कोई स्रोत नहीं है। जब कृपकों की दशा सुधर जायगी और भूमि