पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/८८

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कुछ स्थानों में कांग्रेस की बागडोर शहर के बोहगं, महाजनों और व्यवसायियों के हाथ में हैं। उनके हितों का ग्रामीण समुदाय के हितों से विरोध है। अतः उनसे कृपकों के हितों की ग्ना करने की अाशा नहीं की जा सकती । परिणामतः नगगें और गामी की नीव प्रतिद्वन्द्विता है और ग्राम-क्षेत्रों में कांग्रेस का दवदवा बहुत कम है। क्योकि किसानों की दशा निराशापूर्ण थी अतः उन्ह कांग्रेस में पृथक होकर अपने मवर्ष के लिए अलग संस्था वनानी पर्डी । इम पृष्ठभूमि में यह म्वाभाविक था कि कांग्रेस और किसान संस्थानों के बीच कार्ड मैत्री न हो। मौभाग्य से अभी अभी दोनों के सम्बन्ध काफी मुधर गार है और पहिली कटुना नीव गति से विलीन होती जा रही है । कांग्रेस को यह अनुभव कर लेना चाहिए कि किमान संगटना स द्वंप बढ़ाने सं कांग्रेस का प्रभाव नहीं बढ़ता और उस कृपकी में औत्री स्थापित करने और उनके हितों को अपना लेने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए । यह नभी सम्भव है जब कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व में परिवर्तन हो और न्यूँ कि कृपक तत्वों का पलड़ा शनैः शनैः ऊपर ट रहा है, अनः यह आशा की जा सकती है कि निकट भविष्य में कांग्रे म कृपक हिता का सच्चा प्रतिनिधिन्व कर सकेगी । हमे यह देग्वतं रहना है कि कहीं से स्थानों में कृपक-संस्थायें अनिवामपनी प्रवृतियो की होकर कांग्रेस विरोधी न बन जाये । कृषकवाद का खतरा। एक और ग्बतरा है जिसकी ओर मै यहाँ सकेन करना चाहूगा । वह ग्वतरा है कृषक बाद का जो सभी प्रश्नों को कृषक वर्ग के संकीर्ण और छोटे दृटिकोण से ही देखता है। उसके सिद्धांत इस श्रादर्श पर आधारित हैं कि आर्थिक विकास में हमारे राज्य के सम्पूर्ण ढाँचे को