पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/८९

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( ६२ ) अपना विशिष्ट कृषकवर्गीय स्वभ्य बनाये रखना आवश्यक होगा। वह ग्रामीण जननन्त्र में विश्वास करता है अर्थात भूस्वामी के जनतन्त्र में उसका दावा है कि युद्ध-मनोवृत्ति को नष्ट करने और संसार में शॉति रखने के लिए ऐसा शासनतन्त्र अधिक उपयुक्त है । हाँ कृषक- बाद श्रमिकों की अवश्य रक्षा करंगा क्योंकि उनकी उपेना नहीं की जा सकती है । वह प्रतिनिध्यात्मक प्रकार की सरकार को भी मान लेगा, क्योंकि अनेक वर्ग उसके समर्थक है। उसका कार्यक्रम किमी सिद्धान्त पर आधारित नहीं है, न वह किसी विशेष विचारपद्धनि के अनुकुल है, उसके भीतर मभी वर्तमान विचार-पद्धतियों के तत्व विद्यमान हैं | उसका दृष्टिकोण मध्यम किसान का मा है जो कि अाधुनिक विचारों से प्रभावित हो चुका है और वह निम्नम यवर्गीय अर्थ-व्यवस्था पर आधारित है । अपने भांड़े रूप में वह एक प्रकार का सकाणं ग्रामीणवाद होगा और कृषकों को सब संभव स्थानों पर ऊँचा चढ़ाने का प्रयत्न करेगा। यह दृष्टिकोण अवैज्ञानिक है और एक ऐमी मनोवृत्ति का परिचय देता है जो छोटे कस्क को अत्यधिक महत्व दमकती है । यही यही मनोवृत्ति कुछ अवस्थाओं मे, किमान सभा को गजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए संघर्ष का माधन बनाने की सोच मका है। यह नगर और ग्राम में नीध प्रतिद्वद्विना भी उत्पन्न कर मकनी है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण ना सामाजिक परिवर्तन के उन नियमों मे निर्धारित होगा जो भविष्य की सामाजिक अर्थव्यवस्था में प्रत्येक वर्ग को अपना उचित स्थान देते हैं । वह सामाजिक न्याय के प्रजातन्त्रीय विचार को लेकर चलेगा परन्तु लक्ष्य-प्राप्ति की प्रक्रिया में सामाजिक परिवर्तन के नियमों से अनुशासिन होगा। स्टालिन के शब्दों में, वास्तविक लक्ष्य कृषकवर्ग के प्रमुख समूह को समाजवाद की भावना मे पुनर्दीक्षित करने और शनैः२ कृषक समुदाय को महकारी समिनियों