पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपायों से उनकी दशा नहीं सुधारी जा सकती। ग्राम पुनर्गठन का कार्यक्रम पूर्णतः असफल हो चुका है। गवर्नमेन्ट ने जितना रुपया उसके लिए रखा ा उसमें से एक रडा भाग कार्यालय व्यय इत्यादि में ही उड़ गया। जो कार्य किया गया उसमें से अधिकांश केवल दिखावा करने और निरीक्षक अफसरों को प्रसन्न करने के लिए ही हुअा है कोई भी व्यक्ति उसमें आवश्यक उत्साह का परिचय नहीं रहा । भविष्य में इतने रुपये की मंजूरी भी नहीं होती रह मकेगी । यथार्थ में ये कार्यक्रम बहुधा थोथी तड़क भड़क के अतिरिक्त और कुछ नहीं होते। उनसे किसानों के कष्टदायक भारों में से एक मा हलका नही हो सकता । अच्छे विजार रक्खो और दूध पियो के नारे कोरी लफ्फाजी में अधिक कुछ नहीं है । इन कार्यक्रमों से किमान की मूलभून मांगों का तो कहना ही क्या उनकी तात्कालिक माँगों में से भी किसी का हल नहीं होता। ग्राम पुनर्गठन कार्य का केवल एक परिणाम यह हुआ है कि सरकार को ऐसे कार्यकर्ताओं का एक समूह मिल गया है जो ग्राम ग्राम में सरकारी प्रचार करते फिरते हैं। इन कठिन समस्याओं में हमारे किमान और छोटे जमींदार अपना बचाव कैसे करे ? छोटे जमींदारों की दशा भी सन्तोषप्रद नहीं है।८६ प्रतिशत से भी अधिक जर्मादार मौ रुपये प्रतिवर्ष से कम मालगुजारी देते है और ५६ प्रनिशत २४ रुपये प्रतिवर्ष से भी कम २०३ जमींदार बीस हजार रुपये मालाना मे अधिक देते हैं और लगभग ६००० जमीदार ५००० रुपये से अधिक देते हैं | छोटे और बड़े जमीदारों की कुल संख्या हमारे प्रान्त में १ लाख ६० हजार है। इनमें से ८३ प्रतिशत किमान-संबंधों में भाग ले सकते है। किसानों और छोटे जमीदारों को संगठित होकर शक्तिशाली संस्थायें बनानी चाहिये । जब बड़े जमींदार अपने को संगठित कर रहे हैं तो कोई