पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/९८

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हो मकना । सहकारी समिनियाँ (Co-Operative Socientitas) हमारे प्रान्त में पूर्णतः असफल रहीं हैं । हमारे प्रान्त में लगान-नियम विशेषकर अवध में बहुत ही उपाइक है | कृषिकमियों से बहुधा दाव-घांस की लागे और वेगार ली जाती हैं। उनके असहाय मिरी पर मदैव वेदग्बली का भूत मॅडगता रहता है। हाल की मन्दी ने उनके लिए कठिनाइयों की नई कमल नैयार कर दी है। मालगुजारी की कमी की भी जमींदारों ने कृषकों तक नहीं पहुँचाया है। बहुत से किसान लगान देने में असमर्थ होते भी लगान देकर बेदग्बली म बचने के लिए ऋण लेने को वाध्य हुए है। मन १६२०-२१ मं घोर संघर्ष के पश्चात किमान लोग अपनी माँगों में से एक को मनवाने में सफल हुए थे । पहिले कोई भी आसामी सात साल के पश्चात स्थायी काश्तकार नहीं हो सकता था उस समय की समाप्ति पर जमींदार की इच्छा से किसी भी किसान को बंदग्वल किया जा सकता था । परन्तु वेदखली के कड़े विरोध के कारण सरकार ने तत्सम्बन्धित नियमों में कुछ संशोधन किये । काश्तकारी का हक जीवन भर के लिए मान लिया गया। परन्तु यद्यपि इस संशोधन से किसानों के कतिपय अधिकार मान लिये गये, लेकिन अन्य संशोधनों से जमीदारों के लिए कृषकों को बेदखल करने के नये रास्ते खुल गये। इन कानूनों से-चाहे ये कैसे भी सीमित हैं---किसानों को लाभ तो हुअा है परन्तु बेदखली का शैतान अभी परास्त नहीं हुआ 1 अाज का कृषक नारा है "बेदखली समाप्त करो और मौरूसी अधिकार दो" किसान लोग लगान में कमी करने की भी मांग करते हैं। आर्थिक मन्दी की कृपा से उनका व्यवसाय लाभ-प्रद नहीं रहा है अधूरे