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समाजवाद : पूंजीवाद

ममाजवाद :पंजीवाद भी पूंजीवाद के कारण कुछ हद तक नुटना पड़ना । जब हम न्यूनिसिपल और गजकीय करों के रूप में सार्वजनिक कोपाध्यक्ष को म्पया देने हैं तो या मायंगनिक मैया के रूप में टना एक अंश में लोटा देना है, किन्तु किराये के मामले में प्रेमी यान नहीं है। किगये का रुपया मांधा धनियों के पास जाना है किराये में और उसका मनमाना टपयोग परत है। इसमें प्राय की असमानता घटने के प्रगाय पानी है । यदि हम किसी शहर में जमीन का एक टुका फिगये पर नगर टप पर काम करते है तो या ग्रिण्कुल मात कि जमींदार धमारी कमाई पर निर्वाह करता है। हम उसको इससे नहीं गेक सक्ने । कारण, कानून ने उसको मत्ता दे रस्पी है कि यदि हम जमीन को फाम में लाने के लिए पैसा न दें तो वा में निकाल यार करें। यदि कोई पादमी हवा, धूप और समुद्र पर अधिकार जताने लगे तो हम शयश्य ही टमको पागल कहेंगे, किन्तु वह श्रादमी जमीन को अपनी मिल्कियन समझना है। हमें भी यह बात अमाधारण प्रनीत नहीं होती, पयोंकि हम उमे घामाविक समझने लगे हैं। इसके शलावा हमें मकान का किराया भी देना पडना है जो उचित प्रतीत होता है।म टमा पना यदि मकान का बीमा करा लिया गया हो तो उससे लगा मरने है, स्योंकि यीमा मकान की जितनी कीमत होती है उतनी ही रस्म का कगया जाता है। उस रपये का जितना धार्षिक व्यास होता है यही मकान का ठीक किराया होता है। इस किराये में अधिक हम जो कुछ देते हैं या हम मे जमीन या किराया लिया जाता है। ___ बम्बई, लन्दन-जमे गारों में यह फिगया नफान के असली किंगये से इतना अधिक होता है कि उनकी एक-दूसरे के माय नुलना करना व्यर्थ है । महत्वहीन स्थानों में यह अधिकता इतनी फ्म होती है कि मकान बनाने के पर्च पर उचित मुनाफा भी मुश्किल में निकलता है । किन्तु सय मिलाकर जमीन के किराये की यष्ट रकम इंग्लैण्ड में करोड़ों पौंड होती है । यह मकानों का किराया नहीं है, बल्कि ज़मींदारों ने ज़मीन