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पूँजी और उसका उपयोग
अतिरिक्त रुपये को पूजी कहते हैं। यदि इस रुपये का भी ठीक उपयोग किया जाय तो जमीन की तरह से इसका भी किराया मिल सकता है। उसके मालिक, जो पूंजीपति कहलाते हैं, उसका पूजी क्या है ? किराया लेते हैं। ज़मीन की तरह सम्पत्ति को निजी हायों में रहने देने और उससे किराया कमाने की इस पद्धति को पूंजीवाद कहते हैं। पूजीवाद में हम में से जिनके पास कुछ है वे भी चाहें जव ग़रीब बनाये जा सकते है या उनका रक्तशोषण हो सकता है। इसलिए हमको पूजीवाद को समझ लेना ज़रूरी है। पूजीवाद न तो नित्य है और न बहुत प्राचीन, न असाध्य है न दुस्साध्य । केवल वैज्ञानिक ढंग से उसका निदान होने की आवश्यकता है। वास्तव में सभ्यता पूजीवाद-जनित एक रोग है जो अदूरदर्शिता और अनैतिकता के कारण पैदा हुआ है । यदि पुरानी नैतिक शिक्षाओं और धर्माज्ञाओं ने हमारी मदद न की होती तो पुँजीवादी जगत इससे कमी का नष्ट हो गया होता। किन्तु वह अभी दुनिया में नवजात नास्तिकता ही है, अधिक-से-अधिक दो सौ वर्ष पुरानी । यदि हम असावधान रहेंगे तो उससे हमारी सभ्यताओं का नाश हो सकता है। साधारण स्त्री-पुरुषों के पास जो अतिरिक्त रुपया जमा होता है वह यद्यपि देखने में पूंजीवाद की एक निर्दोष शुल्पात है, किन्तु उसी से दरिद्रता, दुःख, शराबखोरी, अपराध, दुर्गुण और असामयिक मृत्यु का भारी बोमा पैदा होता है । यद्यपि अतिरिक्त रुपये को सब सुधारों का साधन बनाया जा सकता है, किन्तु वह अभी तो सब बुराइयों की लड़ है। अतिरिक्त रुपया क्या है ? अपनी सामाजिक स्थिति के योग्य निर्वाह