पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/११३

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१०६ समाजवाद : पूंजीवाद कारण, उसे यह सोचना होता है कि राष्ट्र के भले के लिए शराब का दूसरा कारखाना अधिक आवश्यक है या दूसरा बन्दरगाह । किन्तु निजी पूंजीपतियों को राष्ट्र के भले की चिन्ता नहीं करनी होती । उनको तो केवल इतना ही सोचना होता है कि अपने और अपने कुटुम्ब के प्रति उनका क्या कर्तव्य है । यह कर्तव्य है अपना रुपया अधिक-से-अधिक सुरक्षित और लाभकारी व्यवसाय में लगाना । इसके अनुसार यदि इंग्लैण्ड के लोग पूंजीपतियों के ही भरोसे रहते तो वे अपने देश में वन्दरगाह न बना पाते। निजी पूंजीपति केवल यही नहीं देखते कि किस काम मे अधिक-से- अधिक रुपया पैदा हो सकता है। वे यह ध्यान भी रखते हैं कि किस काम में कम-से-कम कठिनाई होती है अर्थात् वे कम-से-कम रुपया और श्रम खर्च करना चाहते हैं । यदि वे कोई चीज़ बेचते हैं या कोई काम करते हैं तो उसे सस्ते-से-सस्ते के बजाय महंगे-से-महंगा बना देते है। विचारहीन लोग कहते हैं कि जितनी कम कीमत होती है उतनी ही अधिक विक्री होती है और जितनी अधिक विक्री होती है उतना ही अधिक मुनाफा होता है। यदि पूंजीपति ऐसा करें तो इसमें कोई हर्ज न हो; किन्तु वे ऐसा नहीं करते, क्योंकि कुछ उदाहरणों में यह ठीक हो सकता है कि जितनी कम कीमत हो उतनी ही अधिक विक्री होगी। किन्तु यह सही नहीं है कि जितनी अधिक विक्री होगी उतना ही अधिक मुनाना होगा । कीमत की घटा-बढ़ी के अनुसार ही यदि विक्री के परिमाण में भी घटा-बढ़ी हो तो मुनाफे में कोई अन्तर न पड़ेगा। ____हम विदेशों को खबर भेजने के लिए समुद्र के पारपार लगाये गये तार का उदाहरण लेते हैं । कम्पनी उन खबरों के लिये प्रति शब्द कितना पैसा वसूल करे ? यदि प्रति शब्द एक रुपया लिया जाय तो बहुत कम लोग खबरें भेज सकेंगे और यदि एक थाना लिया जाय तो तार पर दिन और रात ख़बरों का ढेर लगा रहेगा । सम्भव है फिर भी मुनाफा वही हो । यदि ऐसा हो तो एक पाना प्रति शब्द के हिसाब से २५० शब्द भेजने की अपेक्षा एक रुपये का एक शब्द भेजना कम तकलीफ का काम