पूँजी और उसका उपयोग । लाभ पहुंचता है, किन्तु पूँजीवादी प्रकाश-स्तम्भ कभी नहीं बनायेंगे। यदि प्रकाश-स्तम्भों के मालिक उनके पास से निकलनेवाले जहाज़ों से पैसा वसूल कर सकते तो वे समुद्र-तटों और चट्टानों पर प्रकाश-स्तम्भ बड़ी तेजी से बना ढालते। किन्तु ऐसा नहीं हो सक्ता, अतः वे समुद्री किनारों और चट्टानों को अंधेरे में ही छोड़ देते हैं। इसी कारण सरकार बीच में पड़ कर जहाज़ों से प्रकाश की कीमत के तौर पर अतिरिक्त श्राय का संग्रह करती है (जो शायद ही न्याय्य है। कारण, प्रकाश-स्तम्भों से सभी को
- लाभ पहुंचता है ) और प्रकाश-स्तम्भ बनाती है । इंग्लैण्ड-जैसे सामुद्रिक
देश के लिये जो चीज़ जीवन की प्रथम आवश्यकताओं में से हैं पूजीवादी उसी की व्यवस्था करने में असफल हुये हैं। किन्तु पुँजीवादी बहुधा ऐसे श्रावश्यक कार्य भी नहीं करते हैं जिनके द्वारा प्रत्यक्ष रीति से कुछ रुपया पैदा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए हम बन्दरगाह को ही ले लें। हरएक जहाज को बन्दरगाह में आने की फीस देनी होती है, अतः कोई भी वन्दरगाह वाला रुपया कमा सकता है। किन्तु बन्दरगाह बनाने में कई वर्ष लगते हैं, समुद्र में लहरों के वेग को तोड़ने के लिये, दीवारें बनानी होती हैं, समुद्र में श्राने-जाने के लिए मंच बनाने होते हैं, तूफान के समय बने काम के बिगड़ जाने का डर भी रहता है और फिर बन्दरगाह की फीस एक निश्चित सीमा से अधिक नहीं ली जा सकती। यदि ऐसा किया जाय तो जहाज सस्ते बन्दरगाहों में जा सकते हैं। इन्हीं बातों के कारण निजी पूंजी वन्दरगाहों के निर्माण में नहीं लगती। वह ऐसे व्यवसायों में लगती है जहां सर्च की रकम अधिक निश्चित होती है, देर कम लगती है और अधिक रुपया पैदा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए शराबखानों से बहुत लाभ होता है और शराब के तत्काल बिक जाने की सदा ही श्राशा रहती है। किसी यदे शराब के कारखाने का खर्च अनुमान करते समय अधिक-से-अधिक सौ गिची कम या अधिक धांका जा सकता है, किन्तु एक बड़ा वन्दरगाह बनाने में कितना खर्च होगा इसका अनुमान करते समय लाखों की भूल हो सकती है । इस सव का किसी भी सरकार पर कोई असर नहीं होता।