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पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/११६

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पूँजी के अत्याचार


मंजिलों में उतर जाते हैं । ये हमें ऐसे यंत्र देते हैं जो हमारे घरों को झाड़-युहार देते हैं। वे बिजली से हमारे घरों को प्रकाशित करते हैं और जहां जरूरत होती है वहां गरमी भी पहुँचा देते हैं। उनकी दी हुई गरमी से हम अपने घरों में चाहे जो चीज़ उबाल सकते हैं, खाना पका सकते हैं और उनके दिये हुए ऐसे यंत्र पर रोटी सेक सकते हैं जो सिक जाने पर रोटी को तुरन्त एक तरफ फेंक देता है, जलने नहीं देता । इन सब चीजों को वे यंत्रों की मदद से बनाते हैं। जूते, घड़ियाँ, पिर्ने, सुइयां आदि-आदि सभी चीजों के निर्माण में वे यंत्रों का उपयोग करते हैं । वे फीता भी यंत्र से यनाने हैं और एक दिन में इतना बनाते हैं जितना हाथों से हजार औरतें भी नहीं यना सकती।

ये यन्त्र निर्मित चीजें शुरू-शुरू में हाथ यनी चीज़ों के मुकाबिले में खराब होती हैं, कभी कुछ अधिक अच्छी हो जाती हैं और कभी समान रूप से अच्छी होती हैं, कभी कम कीमत में मिलने के कारण खरीदने योग्य होती हैं और कमी दीर्घकालीन स्पर्धा के कारण हाथ-बनी चीजों का निर्माण बन्द हो जाने से केवल वे ही मिलती हैं। कारीगरों के छोटे-छोटे दल पुरानी कारीगरियों को ज़िन्दा रखने की कोशिश अवश्य करते है, फिर भी हम बड़े-बड़े उद्योगों पर आधित हो जाते हैं और अन्त में हाथों से चीजें बनाना भूल जाते हैं। इन यंत्र-निर्मित चीज़ों के विगढ़ जाने पर प्रायः इनके सुधार वाले भी नहीं मिलते, इस कारण हमें उनको फेंक कर नई चीजें खरीदनी पड़ती है जिससे हमारी दुहरी हानि होती है । देखने में तो यह पाता है कि यंत्रों की स्पर्धा के कारण हाय की कारीगरियों के मिट जाने में अधिकतर लोग सस्ती और रद्दी चीजें काम में ला रहे हैं।

यडे-बढ़े पूँँजीपतियों ने इन यांत्रिक साधनों से सम्पन्न होकर छोटे-छोटे साधनहीन उत्पादन कर्ताओं को दुनिया से उठा देने की कोशिश की है। बिना भूखे लोगों की मदद के विविध यंत्रों से युक्त इन मिलों को कदापि खड़ी नहीं कर सकते थे। मजदूरों ने इन यंत्रों का आविष्कार किया और पंजीपतियों ने उन प्राविष्कारों को उनसे सस्ता खरीद लिया; क्योंकि