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समाजवाद : पूंजीवाद

११४ समाजवाद :पूंजीवाद जायंगे और जो बुढ़ापे के कारण नये धन्धे न सीख सकेंगे वे चाहे कितने ही प्रतिष्ठित राजनैतिक विचार क्यों न रखते हों, ख़तरनाक यादमी सिद्ध होंगे। भूखे आदमी भूख के मारे प्राण देने के बजाय पुलिस पर हावी होने जितनी सख्या देखेंगे तो दंगे करेंगे, धनिकों को लूटेंगे और जलायेंगे । सरकार को उलट देने का प्रयत्न करेंगे। इंग्लैण्ड में वेकारों को बेकार-वृत्तियें दी जाती है, लोगों को सन्तति-नियमन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और विदेशों में चले जाने के लिए सरकारी सहायता दी जाती है। यह है पूँजीवाद का विलक्षण परिणाम । पूंजीवाद के कारण देश के लोग ही देश की उन्नति में वाधक हो जाते हैं, उन्हें कीडों-मकोड़ों की तरह दूर फेंकना पड़ता है। दूसरी ओर पूंजीपति और उनके नौकर विदेशों से आई हुई भोजन-सामग्री तथा विलासिता के अन्य साधनों पर आलसी जीवन व्यतीत करते हैं। उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु खर्च अन्धाधुन्ध किया जाता है, विशाल वाग़-बग़ीचे लगाये जाते हैं और भन्य अट्टालिकायें बनाई जाती हैं। ऐसे स्थायी परोपजीवी राष्ट्र की स्थापना न तो कभी हुई और न कभी होगी जिसमें सव श्रमिक पूंजीपतियों की दौलत के भागीदार होने के कारण सुखी और सन्तुष्ट हो । यदि पूंजीपति इतना ध्यान रखने लगेंगे कि उनके देशवासी सब स्वस्थ और सुखी रहे तो वे समाजवादी ही हो जायेंगे । किन्तु वास्तविक बात यह है कि वे इतनी दिक्कतें मोल नहीं ले सकते । अपने नौकर-चाकरों को यदि अपने ही समान रखने की चिन्ता की जाय तो फिर पूजीपति रहने में क्या मज़ा रह जायगा? हाँ, नौकरों को तो इससे अवश्य सुविधा हो जायगी; क्योंकि उनकी फ़िक्र करने वाले भी दूसरे ही होंगे । इन्हीं असुविधाओं से बचने के लिए तो इंग्लैण्ड में धनिक वर्ग के कितने ही लोग अपने सम्पन्न घरों को छोड कर होटलों की शरण लेते हैं, क्योंकि वहाँ उनको अपने नौकरों की चिन्ता करने के बजाय कुछ इनाम-इकराम देने पर ही मंझटों से मुक्ति मिल जाती है। श्रतः पूंजीवाद में असमानता, वेकारी, रक्तशोपण, समाज का वर्गों में विभाजन, तथा तज्जनित सन्तति रोग आदि बुराइयों का मूल तो