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समाजवाद:पूँँजीवाद

११८ समाजवाद : पुँजीवाद के बनाने वालों के कोई यह नहीं जानता कि पिन कैसे तैयार होती है अर्थात् पिन बनाने वाले पुराने कारीगरों की अपेक्षा अाजकल के पिन बनाने वाले दशांश भी योग्य नहीं हैं। इसके द्वारा हमें जो प्रतिफल मिलता है वह यही कि पिनें अत्यधिक सस्ती हो गई हैं। टनके लागत मूल्य पर बहुत सारा मुनाफ़ा चढ़ा देने पर भी एक पाने में दर्जनों पिन खरीदी जा सकती हैं। सस्ती होने से टनी पिर्ने लापर्वाही से फेंक दी जाती हैं। इसमे श्रमिकों की निपुणता का नाश होता है और वे पतिन होते हैं, किन्नु इसका इलाज पूर्वस्थिति पर लौट जाना नहीं है । कारण, यदि थाधुनिक मशीनों के प्रयोग से बचने वाले समय का समान विभाजन हो तो वह पिन बनाने या ऐसे ही दूसरे कामों की अपेक्षा उच्चतर कामों में खर्च किया जा सकता है । जबतक यह न हो तबतक स्थिति यह है कि पिर्ने बनाने वाले मजदूर स्वयं अपने श्राप कुछ नहीं बना सकते । वे श्रज्ञ और असहाय हैं। जबतक उनको काम पर लगाने वाले उनके लिए सारी व्यवस्था न कर दें तबतक वे अपनी छोटी अंगुली भी नहीं हिला सस्ते । किन्तु जिन मशीनों से उनको काम देने वाले काम कराते हैं उनके विषय में वे खुद भी कुछ नहीं समझते, वे दूसरों को पैसा देकर उनसे मान वालों की सूचनाओं के अनुसार मशीन चलनाते हैं। ___कपढे अादि अन्य चीज़ों के उद्योगों के सम्बन्ध में भी ऐसी ही यात है। उनमें हजारों सम्पत्ति के मालिक और लाखो मजदूरी पर काम करने वाले श्रमिक हैं, किन्तु उनमें एक भी श्रादमी ऐसा नहीं है जो कोई चीज़ बना सके या बिना किसी दूसरे के बताये कुछ कर सके। अत्यधिक श्रज्ञान, वेवसी, भ्रम और मूर्खता की स्थिति को पूँजीवाद की अन्धी शक्तियों ने पैदा किया है। लोग बेचारे इसी में गोते खा रहे हैं। ____ कानून वाधा न डाले उस सीमा तक सय काम का भार एक वर्ग पर डाल कर और सारा अवकाश दूसरे वर्ग को देकर पंजीवादी प्रणाली गरीबों की भांति अमीरों को भी पंगु बना देती है। अपनी जमीन और पूंजी को किराये पर उठा कर वे विना हाथ-पांव हिलाये प्रचुर भोजन