१२० समाजवाद : पूजीवाद निर्णय करने का समस्त काम करते है । याज से मौ माल पहिले पूंजीपनि, जमींदार या श्रमिक प्रधान व्यक्ति न थे। प्रधान व्यक्ति में मध्यमवर्गीय कार्यदाता थे जो अधिकाँश में सम्पत्तिवान वर्ग में पैदा हुए थे, जिन्होंने मम्पत्तिवानों के समान ही शिक्षा, रुचि, स्वभाव, रहन-सहन, श्रीर बोलचाल समाज में पाई थी, किन्तु श्रय उस वर्ग में जगह न होने से शासन, नथा व्यवसाय सम्बन्धी कार्यों को करने थे या स्वतंत्र व्यवमाय चलाते थे। वे पंजी, जमीन और श्रम का उपयोग करते थे। और उससे भूखों को कार्य देते थे। इन कार्यदाताओं ने पहिले मध्यमवर्गीय कर्मचारियों के रूप में शुरूयान की थी। पीछे उन्होंने कार्य का अनुभव होने पर कुछ मा गिनियां इकट्टी करके किन्हीं दुसरं कुगल कर्मचारियों को हिस्सेदार बनाकर कोई उद्योग खड़े किए और कार्यदाता बन गए। किन्तु ज्या-ज्या पूजी अधिकाधिक परिमाण में एकरित होने लगी चौर तदनुसार व्यवसायों का विस्तार बढ़ने लगा, न्यो-स्यों उद्योग अधिकाधिक बढे पैमाने पर होने लगे। यहां तक कि पुराने ढग की दोटी- छोटी दूकानों को मालूम होने लगा कि उनके ग्राहकों को बडी सम्मिलित पंजी से चलनेवाली कम्पनियों छीन लिए जा रही हैं जो अपनी वही पूंजी और क्रीमती मशीनों की सहायता से न केवल सस्ते भाव में चीजें वेच ही सकती थीं, बल्कि कम मूल्य लेने के कारण अधिक मुनाफा भी कमा सकनी थीं । वे विविध प्रकार की चीजें एक ही स्थान पर बेचने लगी थीं और इस प्रकार ग्राहकों के लिए उन दुकानों की बनिस्बत जिनमें सव प्रकार की चीज़ इकट्टी नहीं रखी जाती, अधिक सुविधाजनक सिद्ध हो रही थीं। किन्तु परिवर्तन इस रूप में भी हुया कि देखने में वह मालूम न पढ़ सकता था । तेल या तम्याक की सौ पृथक-पृथक दुकानों पर एक ही कम्पनी का, जिसे ट्रस्ट कहते हैं, स्वामित्व होता था । जिस प्रकार सैकडा की पूंजी से चलने वाली दुकानें हजारों की पूंजीवाली कम्पनियों से
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