पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१२८

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पूँजी के अत्याचार

जी के यम्याचार १०१ पिद: गा. उसी प्रकार का पंचाली कम्पनियों की लाग्नों लपये से चनने पाले दन्तों के सामने हार गनी पड़ी। पं. कम्पनियों ने एक दम्ट के रूप में नंगटिन हो कर अपनी रण करने के लिए विकासेना पर। समे नगमागीय कार्यदाता पर मालर पता कि उन्हें पाहिले की ना धोदी जी मिलनी बन्द हो गई। पहिले चार लोग जिनके पाम पनिन्ति रपया हाना, कार्यदाताशों को अपनी मर्जी से रुपया देते जिसे उद्योगों में लगा पर ये उनकी पूंजी का व्याज, जमींदार की जनान का किराया, मजदूरों की मजदुर्ग और बहुन मारा मुनाफा कमा लेते थे। कभी-कभी उनका या गुनासा एनना काफी होता था कि वे उसके हार उमगधों को अंदी में पार जाने थे। फिन्नु थर कम्पनियों की प्रनिमा ने उन भी कम्पनियों के रूप में संगठिन होने और कार्यदाता से कमंगर्ग यन जाने के लिये विश कर दिया । ऐसी स्थिति में वे उचिन चैनन और कम्पनियों में अपने हिन्मों के मुनाफे के अतिरिक्त कुछ नहीं पाते । दुग चार कम्पनी के हिन्मंडार जिनमें धोदी-धोदी पूँजीवाले पाहुन में लोग होते हैं, अपनी पूंजी के मूह के अतिरिक्त मुनाफे का हिमा भी पाने हैं। इस प्रकार मध्यम वर्ग सम्पसियान वर्ग में निकल कर सम्पत्तिहीन शिशिन समुदाय बना । उसने लम्पनियानों के बौद्रिक व्यवसायों और स्यापार द्वारा अपना निवांट किया। फिर या धनी कार्यदाना बना और हद मुनाफा माता हा चार सन्त में या फिर इनना गिर गया । उसका पहिलं का मारा मुनामा शव धन योजना (जिनके नामों के प्रभाव से धन मिलना है) और हिन्सेदारों को जयों में जाने लग गया। पैजाबाद में पंजी का यह तो मध्यमवर्ग पर असर हुथा । श्रय रहा अनिफ या मेहम भूगा वर्ग, जनना, या असंन्हत जन-समुदाय कुछ भी कहें। इन लोगों को अपने जीवन-नियांह के लिए अपने आप को फिराये पर उठाना पड़ता है या कहना चाहिए कि वे अपना श्रम वेचकर अपना निर्वाह करते हैं। अपने श्रम के लिये यदि उनको अधिक मजदूरी मिले तो उनकी हालत अच्छी होगी और यदि कम मिले तो खराव