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पूँजी के अत्याचार

पूँजी के शत्याचार १२३ कुछ शोर कर उन्हें छुट्टी दे सकते हैं। पंजीवाद के मध्याह्न में, जब यह प्रणाली जोरों पर थी, लोटे-छोटे बालक चाबुकों के कोर से सम लेकर मार डाले जाते थे। लोग कहने लग गए थे कि ये कार्यदाना एक पीढ़ी के स्थान में ना पीढ़ियों का माना कर रहे हैं। खानों में स्त्रियों से पतनकारी परिस्थितियों के बीच काम कराया जाता था। इसके बाद कुछ फैक्टरी-नानून बनाये गये जिनमें खानों और दूसरे उद्योगों का नियमन भी शामिल था। मालिकों ने पहिले नो उनके सिलाफ़ शोर मचाया कि ये कानून कारखानों को नवाह कर देंगे; किन्तु पीछे उन्होंने अधिक अच्छी व्यवस्था करके अधिक संख्या में और अच्छे यन्नों का उपयोग करके नया काम जल्दी कराके पहिले से अधिक मुनाफा कमाया। शुरुशुरू में तो मजदूरों ने भी इन कानूनों का विरोध किया था । कारण, उनमे व्यावसायिक कामों के सर्वथा अयोग्य छोटे-छोटे यालको से अनिश्म कराना निपिद्ध हो जाता था, जिसकी प्राय श्रमिक की मजदूर्ग के साथ मिल कर कुटुम्य का गुजर चलाने में मदद देती थी। श्रमिकों ने यह अल्प मजदूरी स्वयं स्वीकार न की थी। पुँजीवाद के प्रमाव में मजदूरों की यही हुई मन्या ने उन्हें अल्प मजदूरी स्वीकार करने के लिये याध्य किया था । पहिले उन्होंने बच्चों की छोटी प्राय को मिला कर इसकी की पूरी की, किन्तु पीछे उनके बच्चों की छोटी भायों को उनकी मदड़ियों को कम करने में व्यवहार क्यिा गया। त्रियों पर पूंजीवादी पद्धति का पुरषों की अपेक्षा और भी खराब असर पड़ा है। यदि कारखानेदारों को उतनी ही मजदृरियों पर पुरुष मिलते तो ये नियों को न रजते । इसी कारण उनको पुरुषों की अपेक्षा कम मजदूरी स्वीकार करनी पड़ी। दूसरे अविवाहित नियाँ पुल्यों से कम भी ले सकती थी, क्योंकि उनके उपर पुरुषों की तरह किन्हीं के पालन-पोषण का भार न होता था। इस प्रकार सामान्य नियम यह वन गया कि नियों को पुरुषों से कम दिया जाय । यदि कभी किन्हीं नियों ने समान कान के लिए समान मजदूरी की मांग की तो उन्हें जबाव दिया गया कि 'यदि तुम कम मजदूरी न लोगी नो बहुत सी स्त्रियाँ ऐसी