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समाजवाद : पूंंजीवाद

१२२ समाजवाद : पूंजीवाद होगी। कुछ न मिले तो वे भूखे मरेंगे; किन्तु इंग्लैण्ड जैसे देशों में उन्हें बेकारवृत्ति मिल जायगी। ___ जहाँ श्रमिकों को अपना श्रम वेचते समय यह खयाल रहता है कि वे कम-से-कम इतना श्रम करें कि उनके श्रम खरीदनेवाले मालिकों को आपत्ति न हो और उसके बदले में उनसे अधिक-से-अधिक पैसा लें, वहाँ उनके कार्यदाता मालिकों को सदा यह ख़याल रहता है कि कम-से-कम पैसा देकर अधिक-से-अधिक श्रम प्राप्त किया जाय । चरम सीमा की सामाजिक बुराइयों का जन्म इसी से होता है । श्रम खरीदने वाले मालिक वही श्रम खरीदते हैं जो सस्ता होता है। उन्हें यह सोचने की जरूरत नहीं कि उसे बच्चे करते हैं या स्त्रियाँ या पुरुष और उससे उनके स्वास्थ्य और सदाचार पर क्या असर होता है। वे इन बातों की तभी चिन्ता करते हैं जब इनसे उनके मुनाफ़ों में कमी श्राती हो। ____लन्दन की ट्रामों के प्रवन्धकों को जय ट्रामों में घोड़े जोते जाते थे तव यह तय करना था कि वे अपनी ट्रामों को खींचनेवाले घोड़ों के साथ किस तरह का वर्ताव करें कि उनसे अधिक-से-अधिक रुपया कमाया जा सके। उन्होंने हिसाव लगाया कि घोड़ों को अच्छा खिला-पिला कर और उनसे कम काम लेकर १८, २० साल या ड्यूक पाव वेलिंगटन के घोड़े की भांति ४० साल तक जिंदा रखने के बजाय उन्हें ४ साल में वेकार कर देना अधिक लाभप्रद होगा । अमेरिका के गोरे खेतिहरों ने अपने हब्शी गुलामों को ७ साल में वेकार कर देने में अधिक-से-अधिक लाभ समझा था और इसलिए उन्होंने अपने प्रवन्धकों को हब्शी गुलामों के साथ तदनुसार व्यवहार करने की थाज्ञा दी थी। उनको मार डालने में उन्हें नये घोड़ों और गुलामों की भारी कीमत देनी होती थी; किन्तु वच्चों, स्त्रियों और पुरुषों को उनके कार्यदाता मामूली मज़दूरियों पर कड़े-से-कढ़े कामों में लगा सकते हैं और जल्दी मार सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि उनके पास काम न हो तो उन्हें घोडों और गुलामी की तरह उनको खिलाने की भी आवश्यकता नहीं । वे उन्हें हफ्तों के हिसाब से काम पर लगा सकते हैं और जव काम न हो तो चाहे वे भूखों मरे चाहे