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समाजवाद : पूँजीवाद

१२८ समाजवाद : पूँजीवाद हो कर संगठित होते और अपन — शिकायते मालिकों के सामने रखते। इसके बाद अपना काम निकल जाने पर, या हार जाने पर तवतक के लिये विखर जाते जबतक कि उन्हें कोई ऐसा ही अवसर प्रा जाने पर पुनः संगठित होने की ज़रूरन न होती। किन्तु जब वे वेकारी से संरक्षण पाने के लिये बीमा-कोप बनाने लगे तो उन्हें अपने संगठन को स्थायी रूप देना पड़ा । इस प्रकार ये संघ क्षणिक उपद्रवों से अाजकल के जैसे हद व्यवसाय-संघों में परिणत हो गये। अव श्रमजीवी-संघी की उपयोगिता पर विचार किया जाता है। यदि व्यवसाय-सं? का पर्याप्त संगठन हो जाय तो वे श्रमिकों को मालिको के धागे खड़ा होने के योग्य बना देते हैं। उनके मालिक उन्हें व्यवसायों से निकल जाने की धमकी नहीं दे सकते । यदि किसी शहर के सभी ईट जमाने वाले अपना संघ बनालें और प्रति सप्ताह थोड़ा-थोड़ा चन्दा उसमें देकर जरूरत के वक्त के लिये एक कोप जमा करले तो मालिकों द्वारा मज़दूरियाँ घटाई जाने पर वे काम छोड़ कर उस कोप पर अपना निर्वाह कर सकते हैं और कोप के परिमाणानुसार मालिकों के काम को हफ्तों या महीनों बिल्कुल बन्द कर सकते हैं । इसको हड़ताल कहते है । मज़दूरियाँ घटाने पर आपत्ति-स्वरूप ही नहीं, मज़दूरियां बढ़वाने, काम के घन्टे कम करवाने या और किसी बात के लिये भी, जिसके सम्बन्ध में मजदूरों और मालिकों में शान्तिपूर्वक समझौता न हो सके, हड़ताल की जा सकती हैं। हड़तालों की सफलता या असफलता मालिकों के व्यवसायों की स्थिति पर निर्भर होती है। यदि मालिक चाहें तो कोप की समाप्ति पर हड़तालियों के मुकने तक हड़ताल को बर्दाश्त कर सकते हैं, किन्तु यदि न्यापार उन्नति कर रहा हो और उन्हें लाभ अधिक हो रहा हो तो वे मजदूरों की मांगे जल्दी स्वीकार कर लेंगे। ___ऐसे अवसर भी पाते हैं जब व्यापार सुस्त हो जाता है और मालिक यह अनुभव करते हैं कि यदि उनके व्यवसाय कुछ समय तक बन्द भी रहें तो अधिक हानि नहीं होगी। ऐसे समय वे मजदूरों की मजदूरियां घटा देते हैं और उन घटी हुई मजदूरियों को स्वीकार न करने वाले सभी