१३१ पूंजी और श्रम का संघर्ष अपना श्रम येचते थे। आज लगभग ४५ लाख मजदूर पूंजीवाद के अनुयायी हो गए हैं और नियमानुसार संघर्ष-तत्पर संघों के सदस्य बन गए हैं। वर्ष में ६००-७०० च्यावसायिक संघर्ष होते हैं। इससे इंग्लैण्ड को कितने दिनों के काम की हानि होती है। यदि इसका हिसाब लगाया जाय तो दिनों की संख्या लाखों पर पहुंचेगी। पूंजीवाद का यह भयंकर दुष्परिणाम उस देश को भोगना पड रहा है। अन्य देशों में भी कम या अधिक ऐसी ही अवस्या है। किन्तु लोग श्रज्ञान से इसको समाजवाद समझते हैं। मजदूर जब पूंजीपतियों को अपनी पूंजी से, व्यवसायियों को अपने व्यवसायों से और धन-संयोजकों को अपनी धन-संग्रह करने की कला से अनाप-शनाप धन कमाते देखते हैं तो उन्हें भी अपने श्रम से अधिक-से-अधिक रुपया कमाने के लिए संघों के रूप में संगठित होने की श्रावश्यकता प्रतीत होती है। इस संघर्ष का परिणाम यह होगा कि उद्योगों की गति कभी बन्द हो जायगी। अन्त में या तो सम्पत्ति श्रम को अपनी शक्ति से गहरी गुलामी में ढकेल देगी या श्रम विजयी होकर सम्पत्ति का स्वानी बन जायगा । • जय इंग्लैण्ड में पहिले-पहल इम न्वुले संघर्ष की घोषणा की गई तो मालिकों ने श्रमजीवियों को अपराधी के तौर पर दण्डित करने के लिए अपनी पार्लमेण्टी सत्ता का उपयोग किया । संघों को पड़यंत्रों में गिना गया और उनमें शामिल होने वाले मजदूरों को पड़यंत्रकारियों में। फलतः संघ गुप्त संस्थानों में परिणत हो गए और उनका नेतृत्व अधिक रद-निश्चयी और कानून की कम पर्वाह करने वाले लोगों के हाथ में चला गया। अन्त में सरकार ने समझ लिया कि दमन से इनकी शक्ति और भी बढ़ती है। कारण, वह केवल थोड़े से लोगों को दण्ड दे पाती जो दपिटत हो कर और भी अधिक मजदूरों की श्रद्धा के पात्र हो जाते । सार्वजनिक आन्दोलन होने से भी संघवाद को अधिकाधिक उत्तेजन मिलता था। इसके याद मालिकों ने अपने हथकंडे श्राजमाए । उन्होंने संघों के सदस्यों को अपने कारखानों में नौकर रखना अस्वीकार कर दिया; किन्तु
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