१३० समाजवाद : पूंजीवाद धूल-शोषक यंत्र लगाने के लिए वाध्य किया। लोहे के कारखानों में भी वैसे ही यंत्र लगाए गए। इन यंत्रों के कारखानों में लगाने से पूर्व उनमें काम करने वाले मजदूरों को धूलभरी घातक हवा में साँस लेनी होती थी जिसके परिणाम स्वरूप फेफड़े खराब हो जाने से वे घोर कष्ट सहन करते थे। ___ मजदूर केवल मजदूर-संघों द्वारा निश्चित मजदूरी से कम मजदूरी लेकर ही अपने साथी मजदूरों का अहित न कर सकते थे, वे मजदूर संघों द्वारा निश्चित कार्य से अधिक कार्य करके भी उन्हें नुकसान पहुंचा सकते थे। इस कारण से संघी ने मजदूरों को यह हिदायत की थी कि कोई भी मजदूर यदि काम पर रक्खा जाय तो वह निश्चित काम से थोड़ा भी अधिक काम न करे । इसके विरुद्ध मालिक यह करते थे कि वे हरएक श्रादमी कितना काम करे यह तय करने के लिए किसी तेज-से-तेज और परिश्रमी श्रादमी को चुनते थे और वह जितना काम करता उतना हरएक मजदूर से कराने की कोशिश करते थे। ____ इस तरह पूंजीवाद मालिकों को मजदूरों से अधिक-से-अधिक काम लेने और मजदूरों को मालिकों के लिए कम-से-कम काम करने को विवश करता है, किन्तु मालिकों और मजदूरों के इस संघर्ष के परिणाम स्वरूप राष्ट्रों के उद्योग-धन्धे अभी तक नहीं मरे । इसका कारण यह है कि पूंजीवाद ने मानव-स्वभाव पर अभी इतनी विजय नहीं पाई है कि हरएक आदमी सर्वथा व्यावसायिक सिद्धान्तों का ही अनुसरण करने लगे। सभी राष्ट्रों के जन-साधारण मालिकों द्वारा जो कुछ मिल जाता है वह नम्रता और अज्ञता के साथ ले लेते हैं और यथाशक्ति काम करते हैं। हिंदुस्तान के किसानों की तरह कुछ इसे अपने भाग्य का दोप समझते हैं और ऋतुओं की तरह स्वाभाविक भी मानते हैं। ___ इंग्लैण्ड में उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में मजदूरी करने वाले लोगों की संख्या १ करोड़ ४० लाख थी, जिन में से केवल १५ लाख च्यवसाय-संघों में शामिल थे। इसका यह अर्थ हुना कि इतने मजदूरों में से केवल १५ लाख मजदूर पूँजीवादी व्यावसायिक सिद्धान्तों के अनुसार
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