अन्त नहीं है। जिन कामों की लोगों ने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी उन्हीं को मजबूरन कराने के लिए नए कानून बनाए जाते हैं।
कितने ही पुराने कानूनी को इसलिए रद्द कर दिया जाता है ताकि लोगों
को उन कामो के करने की आजादी मिल जाय जिनके लिए वे पहले
दण्डित किए जाते थे। जो कानून रह नहीं किए जाते उनमें इतने
संशोधन किए जाते हैं कि उनके प्रारम्भिक स्वरूप का शायद ही कोई
चिह्नवत्र रहता है। चुनाव के समय कितने ही उम्मीदवार तो यह कह
कर लोगों से मत प्राप्त करते हैं कि हम अमुक नए कानून बनाएंगे और
अमुक पुरानों को रद्द कर देंगे। कुछ यह भी कहते हैं कि हम मौजूदा
स्थिति को कायम रक्खेंगे। किन्तु यह असम्भव है। मौजूदा स्थिति कायम
नहीं रह सकती।
इसलिए जब हम यह अध्ययन करने लगे कि वह सम्पत्ति जिसे हम प्रति वर्ष उत्पन्न करते हैं हमारे बीच में कैसे बाँटी जाय तय हमें बच्चों की तरह न तो यह सोचना चाहिए कि इस समय जैसा है वह स्वाभाविक है, हमेशा था और आगे भी रहेगा और न दादा-परदादाओं की तरह से यही खयाल करना चाहिए कि इसमें परिवर्तन होने का खयाल करना पागलपन है। हम को यह बात सदा ध्यान में रखनी चाहिए कि धारा-सभाओं के अधिवेशन होते रहते हैं और सम्पत्ति के हमारे हिस्सों में भी एक या दूसरे स्थान पर नित्य ही परिवर्तन होता रहता है। जिस प्रकार उन्नीसवीं सदी और इस समय की साम्पत्तिक स्थिति में इतना अन्तर है कि जिसकी वहादुरशाह ने कल्पना भी नहीं की होगी, ठीक उसी प्रकार सम्पत्ति का जितना भाग आज हमारे पास है वह हमारे जीवन-काल में ही कम या अधिक हो जायगा। सम्पत्ति का हमारा वर्तमान विभाजन यदि हमें स्थायी मालूम पड़े तो हमें समझना चाहिए कि हमारी बुद्धि मारी गई है। हमारे कानूनों में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन का यह फल होता है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोति से किसी की जेब में से पैसा निकल कर दूसरों की जेबों में चला जाता है। हमारी विनिमय की दर में घटा-बड़ी होने से किसानों को आय में नुरन्त घटा-बढ़ी हो जाती है।