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पूँजीवाद में निजी पूँजी

पूंजीवाद में निजी पूँजी १४१ हिस्सेदार बड़े घाटे में रहते हैं। ऐसी दशा में सुस्थापित पुरानी कम्पनी के शेयर खरीदना ही निरापद होता है । चाहे श्रामदनी कम हो, किन्तु यदि सरकारों अथवा न्यूनिसिपैलिटियों जैसी संस्थाओं को कर्ज दिया जायगा तो वह पूंजी का सब से अच्छा विनियोग कहा जायगा। ___हमारे शहरों में सट्टे का धाम प्रचार है । यह एक प्रकार का जुधा है जिसको पूंजीवाद ने जन्म दिया है । स्टाक एक्सचेंज में विना तत्काल रुपया या शेयर-सर्टिफिकेट दिये शेयर खरीदे या बेचे जासकते हैं। सौदे की अगली तारीख को, जो पन्द्रह दिन याद तक निश्चित निजी पंजी हो सकती है, रुपया या शेयर सर्टिफिकेट दिये जाते हैं। और सही श्रव इन पन्द्रह दिनों में ही शेयरों की कीमत में जमीन- भासमान का अन्तर पड़ सकता है । कम्पनियों के शेयरों का कम या अधिक विकना या हिस्सेदारों में मालाना कम या अधिक मुनाफ़ा बंटना विभिन्न चीजों की पैदावार पर निर्भर करता है। खड़, कोयला, तेल, अनाज अादि चीज़ों की नस्लों के अच्छे-बुरे होने के अनुसार सम्मिलित पूँजी पर चलने वाली कम्पनियों के व्यवसाय धार उन्नति के लक्षणों में जैसे-जैसे घटा-बड़ी होती है, वैसे-वैसे उनका विकास और पनन होता है और लोगों में शंकायें और श्राशंकायें पैदा होती हैं। इस कारण शेयरों की कीमतें न केवल सालॉसाल, बल्कि रोज-रोज, घन्टे-घन्टे और उत्तेजना के समय मिनिट-मिनिट पर बदलती रहती हैं। जो शेयर वर्षों पहले सौ पये में खरीदा गया हो, उससे एक हजार रुपया वार्पिक श्राय भी हो सकती है और तीस रुपया भी, वह एक लाख रुपये में भी बेचा जा सकता है और तीस रुपये में भी । साथ ही यह भी सम्भव हो सकता है कि उस शेयर पर न केवल प्रामदनी ही न हो, बल्कि उसको बेचने जावे तो एक कौडी भी वसूल न हो । इस प्रकार चूंकि शेयरों के भाव बदलते रहते हैं और स्टाक एक्सचेंज में शेयरों का रुपया या सर्टिफिकेट तत्काल देने की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसलिए लोग यह करते हैं कि अपने नयाल के अनुसार जिस कम्पनी के शेयरों की १०