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समाजवाद:पूँजीवाद

१४६ समाजबाद : पूँजीवाद कीमत बढ़ने की सम्भावना हो, उसके शेयर खरीद लेते हैं और जिस कम्पनी के शेयरों की कीमत घटने की सम्भावना हो, उसके शेयर बेच देते हैं। यदि उनका अनुमान सही निकलता है तो वे भुगतान की तारीख्न के पहले, अपने ख़रीदे हुए शेयर मुनाफे के साथ वेच देते हैं और वेचे हुए शेयर खरीद लेते हैं। बाद में, भुगतान के दिन बेचे हुए शेयरों का रुपया और खरीदे हुए शेयरों के सर्टिफिकेट उन्हें मिल जाते हैं और वे मूल सौदे के अनुसार खरीदे हुए शेयरों की कीमत और बेचे हए शेयरों के सर्टिफिकेट दे देते हैं । इस प्रकार शेयरों के खरीद-विक्री वाले दिन के भावों में और भुगतान के दिन वाले भावों में जो अन्तर होता है, वह उनकी जेबों में रह जाता है। स्टाक एक्सचेंज में अजब तरह के शब्द काम में आते हैं। अमुक तरह का सौदा करने वाले सांड और अमुक तरह का सौदा करने वाले भालू कहलाते हैं। जो लोग आँशिक कीमत देकर नई कम्पनी के पूरी कीमत के शेयर अपने लिये सुरक्षित कर लेते हैं और पूरी कीमत चुकाने का समय थाने के पहले उन शेयरों को मुनाफ़े के साथ बेच देने की अाशा रखते हैं, वे 'हिरण' कहलाते हैं। यह जरूरी नहीं है कि लोगों का अनुमान सही ही निकले, वह ग़लत भी निकल सकता है। जिन शेयरों के भाव घटने की उम्मीद हो, उनके भाव बढ़ सकते हैं। इस प्रकार लाभ के बजाय घाटा भी हो सकता है। किन्तु यह भावों के अन्तर जितना ही होगा। वह साधारणतः फ्री सैकड़ा पाँच-दस रुपये से अधिक नहीं होता है । 'सॉढ' हर्जाना देकर और भालू जुर्माना देकर अपने हिसाव का भुगतान अगली तारीख तक लम्बा भी सकते हैं। सट्टे के इस खेल में लोग लाखों रुपया खोते और कमाते हैं। कुछ धनवान स्वयं सहा न करके शेयर-दलालों की मारफत सट्टा करते हैं । इसके अलावा कुछ सट्टा-सहायक दुकानें भी होती हैं, जो अपने ग्राहकों से थोडी रकम लेकर उनके लिए दस गुनी कीमत तक के शेयरों की खरीद-विक्री करती हैं । उस दशा में यह होता है कि या तो ग्राहक की सब रकम ही डूब जाती है या कई गुनी रकम उसके पल्ले पड़