पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४७
पूँजीवाद मेंं निजी पूँँजी

पूंजीवाद में निजी पूंजी १४७ जाती है। इन दुकानों पर स्टाक एक्सचेंज संस्था का कोई बन्धन नहीं होता, जैसा कि नियमित शेयर दलालों पर होता है। इसलिए यदि वे अपने ग्राहकों को धोखा देती हैं तो उसका कोई इलाज नहीं हो सकता। ___ स्टाक एक्सचेंज में कई तरह से जुश्रा खेला जाता है और उसकी शों के अलग-अलग नाम निश्चित हैं। लन्दन की केपल कोर्ट में, न्यूयार्क को वाल स्ट्रीट में, यूरोप के बोरसों (विनिमय बाज़ारों ) में, बम्बई, कलकत्ते के स्टाक एक्सचेंज भवनों में रोज़ लाखों रुपयों का सट्टा होता है । न खरीदने वालों के पास रुपया होता है और न बेचने वालों के पास माल; सव काम जवानी जमा-खर्च से चल जाता है, किन्तु किसी को यह खयाल न करना चाहिए कि इस सर्ट से देश धनी होता है। लोग इस काम में जितनी शक्ति, साहस और बुद्धिमानी खर्च करते हैं, यदि उसको ठीक दिशा में लगाया जाय तो हमारे गन्दे घरों, रोग- प्रकोपों और अधिकांश जेलों का, जिनको पैदा करने में पूजीवाद को वर्ष लगाने पड़े हैं, कुछ ही घंटों में खात्मा हो जाय । बैंक लोगों को साख पर उधार रुपया देने का काम करता है और उसके बदले एक निर्दिष्ट रकम उनसे वसूल कर लेता है। निर्दिष्ट कमीशन पर हुँडियां भी सिकारता है। बैंक की दर कम हो जाने पर व्यवसायी खुश और बढ़ जाने पर परेशान हो जाते हैं। बैंक की दर निजी पूंजी कम होने का यह अर्थ होता है कि बैंक के पास अतिरिक्त और बैंक रुपया उधार देने के लिये काफ़ी मात्रा में मौजूद है और उधार लेने वालों की संख्या कम है। इसके विपरीत जव बैंक दर बढ़ती है तो समझना चाहिए कि बैंक के पास उधार देने के लिए रुपया अधिक नहीं है और रुपया मांगने वाले ज़्यादा हैं। जब पिछली हालत होती है तो बैंक के अलावा और जगह भी रुपये का भाव तेज़ हो जाता है, अर्थात् सूद की दर बढ़ जाती है। सवाल यह है कि बैंकों के पास लोगों को उधार देने के लिए रुपया कहाँ से श्राता है ? बात यह है कि लोग अपना बचा हुथा रुपया बैंकों में जमा कराते हैं और श्रावश्यकतानुसार वापस लेते रहते हैं। इस प्रकार