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सिक्का और उसकी सुविधायें

सिका और उसकी सुविधायें अावश्यकता पूरी हो सके । सिक्को और नोटों की कीमत चीजों की कीमत की तरह हो स्थिर होती है। जब चीजें श्रावश्यकता से अधिक बनती हैं तो सस्ती हो जाती हैं । किन्तु जब उनकी कीमत इतनी अधिक घट जाती है कि और अधिक नहीं घटाई जा सकती तो वही उनकी स्थिर कीमत हो जाती है। यही वात सोने के सिक्कों के बारे में कही जा सकती है। सोना और किसी चीज की अपेक्षा सिक्को के लिए अधिक उपयोगी होता है, इसलिए गिन्नियों के रूप में एक औंस सोना पाट के एक औंस सोने की अपेक्षा अधिक मूल्य वाला होगा। किन्तु यदि सरकार आवश्यकता से अधिक गिन्नियाँ बनावे तो उनका भाव पाट के सोने से कम हो जायगा और सब चीजों के भाव बढ़ जायंगे। इसका नतीजा यह होगा कि लोग गिन्नियों को गलाकर उस सोने की दूसरी चीज़े बनाने लगेंगे, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें अधिक मुनाफा होगा। फलतः गिनियों की संख्या घट जायगी और उनकी कीमत बढ़ जायगी। इस प्रकार जबतक रुपया सोने का रहता है और उसका गलाना लाभकारी होते ही रोका नहीं जा सकता, तबतक सोने के सिक्के का मूल्य निश्चित और अपने-श्राप स्थिर रहता है। इस प्रकार सोने के रुपये का मूल्य स्थिर हो जायगा और सब कीमतें सोने में स्थिर की जा सकेंगी । किन्तु सोने के पैसे-थाने तो नहीं बनाये ना सकेंगे, क्योंकि वे इतने छोटे होंगे कि उनको काम में ला सकना कठिन होगा। इसी प्रकार जव लाख-पचास हजार रुपया देना-लेना हो तो हजारो गिन्नियों का योमा ढोना भी मुश्किल होगा। अतः पहली कठिनाई को हल करने के लिए ताम्बे के पैसे और काँसे तथा चाँदी के याने जारी किये गये और यह तय कर दिया गया कि एक गिन्नी ३२० आने और १२८० पैसों के बराबर मानी जायगी। दूसरी कटिनाई को हल करने के लिए सरकार ने पचास, सौ और हजार के कागज के नोट जारी किये, जिन पर सरकार की ओर से यह वायदा लिखा रहता है कि जिस स्थान से यह नोट जारी किये गये हैं, वहाँ से इन नोटों के बदले नकद रुपया मिल सकेगा। लोग इन नोटों को सोने जैसा ही समझ कर