पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१७४

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उत्पत्ति के साधनों का राष्ट्रीयकरण १६७ मिसाल पूँजीवाद के इतिहास में न मिलेगी। जिस प्रकार जीवन के लिए रक्त का प्रवाहशील होना आवश्यक होता है, उसी प्रकार सभ्य देश के लिए यह आवश्यक है कि स्पया एक से दूसरे हाथों में जाता रहे। किन्तु निजी सम्पत्ति की श्राम जन्ती के कारण राष्ट्रीय कोप में रुपया अत्यधिक मात्रा में इकट्ठा हो जायगा और उसे देश के विभिन्न हिस्सों में वापस भेजने का प्रश्न सरकार के लिए जीवन और मरण का प्रश्न वन नायगा । इस रूपये का एक बड़ा हिस्सा शहरों और कस्यों की जन्तशुद्रा भूमि के किरायों से आवेगा। वर्तमान मालिक इन किरायों को जहाँ इच्छा होती है, वहीं खर्च करते है; वे उन स्थानों में क्वचितही खर्च करते हैं जहाँ के अधिवासियों के श्रम से कि वे किराये पैदा होते हैं । अतः कस्तों में रहने वालों को श्राजकल काफी मात्रा में म्यूनिसिपल कर देने पड़ते हैं जो उनके लिए बहुत कष्टदायक और भारी पड़ते हैं। यदि ये कर राज्य कोप से बड़ी-बड़ी रक्रमों के रूप में दिये जाँय तो करदाता इसका स्वागत ही करेंगे। इस उपाय द्वारा राज्य-कोप को रुपये को गी से छुटकारा मिल सकता है। ___ इसके अलावा सड़कों पर, समुद्र के भीतर से जमीन निकालने पर जंगल यनाने पर, जत-प्रपातों पर बड़े-बड़े बाँध बाँधने पर, तंग और गन्दे मकान वाले तत्वों को गिराने पर, और उनके स्थान पर सुव्यवस्थित, स्वास्थ्यकर और सुन्दर बाग-बगीचों वाले शहर बसाने पर और इसी तरह की थन्य सैकड़ों बातों पर रुपया खर्च किया जा सकता है। पूजीवाद इन यातॉ की स्वप्न में मी कल्पना नहीं करता, क्योंकि उनसे मुनाफ़ा नहीं कमाया जा सकता। किन्तु ये ऐसे काम हैं कि जिन पर काम करने योग्य सब बेकारों को लगाया जा सकेगा। ____ यह सब वडा सुन्दर प्रतीत होता है, किन्तु कुछ ही क्षण के विचार से पता चलता है कि यह जिनना सुन्दर है उतना प्राप्लान नहीं है । नगरों को आर्थिक सहायता देने के लिए बड़ी-बड़ी योजनायें बनानी होगी और उन पर धारा-समाओं को महीनों वाद-विवाद करना होगा। पूंजी सत्ती और प्रचुर मात्रा में मिलने का यह अर्थ होगा कि प्रतिवर्धात्मक उद्योगों