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समाजवाद:पूँँजीवाद


को वाढ़ श्राजायगी, पैदावार आवश्यकता से अधिक होने लगेगी और अनुभवहीन लोग निकम्मे उद्योग खोल बैठेगे । संक्षेप में तेजी के बाद

मन्दी आयगी और उसके साथ हमेशा की वेकारी, उचित दिवालियेपन आदि का दौर आवेगा । अतः रुपये पर नियंत्रण मार्ग रखने के लिए यह आवश्यक होगा कि राज्य-कोप का नया

विभाग कायम किया जाय, नये बैंक खोले जायें और उनमें शिक्षित कर्मचारियों को नियुक्त किया जाय । इसी प्रकार अन्य उद्योगों में पुराने प्रबन्धकों के स्थान पर नये कर्मचारी नियुक्त करना होगा, क्योंकि पुराने प्रबन्धक अपने-आप को नई व्यवस्था के अनुकूल मुश्किल ही से बना सकेंगे। इसी प्रकार सड़क बनाने, शहर वसाने जैसे सार्वजनिक निर्माणा-कार्य मनमाने तौर पर जारी नहीं किये जा सकते । इन सब बातों के लिए काफ़ी विचार और व्यावहारिक तैयारी की ज़रूरत होगी । बिना निश्चित योजना के कुछ नहीं हो सकेगा और योजना बनाने के लिए समय चाहिए। उसके पहले ही सम्पत्ति की आम जन्ती के कारण जो लोग वेकार होंगे, वे मर मिटेंगे।

अतः बिना क्षति-पूर्ति किये सामूहिक राष्ट्रीयकरण अनर्थकारी सिद्ध होगा, चिकित्सा का अनर्थ होने के पहले ही रोगी खत्म हो जायगा। क्रांति हो जायगी । कहा जा सकता है कि क्रांति तो स्वागत करने की वस्तु है। किन्तु क्रान्तियों से किसी चीज़ का राष्ट्रीयकरण नहीं हो जाता, वल्कि वह बहुधा मुश्किल ही बनता है। यदि पूँँजीपतियों के कोलाहल-पूर्णा और अदम्य विरोध के मुकाविले में अकुशल समाजवादियों द्वारा क्रान्ति हो जाय तो प्रगति के स्थान पर प्रतिक्रिया होगी और पूंजीवाद को नया जीवन मिल जायगा । इसलिए उचित यही है कि सावधानी-पूर्वक योजना बना कर श्रति-पूर्ति के साथ एक के बाद एक उद्योग का राष्ट्रीयकरण हो । यहाँ हमें यह न भूलना चाहिए कि राष्ट्रीयकरण के लिए योग्य होने के पहले उद्योग एक-दूसरे के साथ इतने मिले रहते हैं कि परस्पर मिश्रित आधे दर्जन अन्य उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किये बिना एक उद्योग का राष्ट्रीयकरण प्रायः असम्भव होता है।